Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 15
________________ अकेला हो गया है। यह चित्र छोटे सींग वाले एक सांड का है। हड़प्पा के लिपि के वाचन - प्रयास का कार्य आगे बढ़ने से अनुभव होता है कि सम्भवत: छोटे सींग वाले सांड का यह चित्र मोहरों पर ऋषभ के प्रतीक के रूप में अंकित किया गया है। उसी को थोड़े व्यापक सन्दर्भ में शायद एक सींग वाले सांड अर्थात् यूनीकार्न के रूप में उकेरा जाता है तब इसके साथ एक पौराणिक छत्र अर्थात् अक्ष का भी अंकन किया जाता 5. जड़ भरत14, सील क्रमांक 4303, 216001 सत/सुत ज (द) व्रत ___ सुत य द्व वृत अथवा सुत जड़ भरत (ऋषभ) पुत्र जिसके दो (जन्म) वृत (यहाँ चित्रित हैं) अथवा (ऋषभ) पुत्र (ही) जड़ भरत (है)। एक पक्की मिट्टी की पट्टिका के दोनों ओर दो अलग-अलग मोहरों के छापे अंकित हैं। हड़प्पा के प्रतीक चिह्नों के साथ एक दो मंजिला रूपाकर और एक त्रिशूलनुमा यष्टि के साथ स्थित एक छोटे सींग वाले सांड के बीच में एक मानवाकृति का चित्र 4303. 216001 27601 यह पूरा फलक हड़प्पा की लेखन पद्धति का दुर्लभ प्रमाण है जिसमें बम सुत पात लेखन और चित्रण की सीमाएँ निर्धारित नहीं की गई हैं। लेखन की समग्रता में चित्रण, प्रतीक चिह्न और अक्षर सब एक साथ हैं। सम्पूर्ण चित्र सम्भवत: ऋषभ के पुत्र भरत, जिसे जड़ भरत के नाम से भी जाना जाता है। उसकी एक जीवन कथा का अलंकरण है। 15 मजेदार तथ्य यह है कि जिसे महादेवन बीच की मानवाकृति मान रहे हैं वह भी अक्षर प्रतीक है 'सुत' अर्थात् 'पुत्र'। ऋषभ (छोटी सींग वाला सांड) पुत्र और पालकी में बैठे सौवीरराज के बीच संवाद का दृश्य चित्रित किया गया है। बिना प्रतीक चिन्हों वाला फलक, दाँयी ओर से प्रारम्भ करके - एक शेर, एक बकरी, एक आसन पर विराजमान एक व्यक्ति और पेड़ की मचान पर बैठा व्यक्ति नीचे शेर के साथ। यह चित्र पुन: जड़ भरत की एक और जन्म कथा का दृश्य है। इसमें महादेवन ने जिसे बकरी समझा है वह वास्तव में मृग शावक है। कथा के अनुसार, सिंह के भय से एक गर्भिणी मृगी, अपने गर्भ के शिशु को त्याग, जल में गिरकर मर. जाती है। और उस नन्हें मृग शावक को भरत मुनि पाल लेते हैं। मगर उसके मोह में पड़ने के कारण उन्हें पुन: एक ब्राह्मण के कुल में जन्म लेना पड़ता है। उसी जन्म की एक कथा को दूसरे फलक पर चित्रित किया गया है। 6. ऋषभदेव को समर्पित सत-आसन 16, मोहर क्रमांक 2430, 107811 परमात्म या प्रमातृ या परम नत/व्रात्य सत्य धर्म/धारणा के प्रतिपादक अथवा परम (महामहिम) नत (हैं)। अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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