Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 37
________________ प्रकार प्रत्येक ओषजन परमाणु का श्वांस में सहयोग सहज ही 18 बार जन्म और मरण चित्र-4. स्पर्श बोधी रक्त कणों का अलग-अलग कार्य क्षेत्र 888 भ. हीमोग्लोबिन युक्त लाल रक्त कण स. : O+ð: २ ओोषजन भ्राणु वायुकायिक बादर निमोद = 0, लिम्फोसाइट 1 चित्र क्रमांक 4 वातावरण से खांस प्रक्रिया द्वारा रक्त में ओळखन प्राप्ति ओोषजन परमाणु मोबोसाइट ब. 5 श्वेत रक्त कण इओसिनोफिल न्यूट्रोफिल ओषजुन +:0→ बाइट् निगोद = ग्राम्सीटीमोग्लोबिन ८० ऐमोग्लोबिन Co बेसोफिल CO2 + उच्छवास फेफड़ों में स्थित कार्बाक्सी - हेमोग्लोबिन (बादर विनोद) चित्र क्रमांक 5 में निकल जाता है। Crab Cycle (क्रेब चक्र) के परमाणु तथा Redox श्वांस एन्जाइम्स भी इसी में शामिल रहते हैं। इस प्रकार श्वांस की प्रक्रिया बादरनिगोद वर्गणाओं का एक क्रमिक (Chain) जन्ममरण दर्शाता है। चित्र - 5 में ऐसी ही प्रक्रिया प्रदर्शित है जिसके द्वारा पायरोफासफेट बंध द्वारा ( ~P) ऊर्जा शरीर में प्रतिष्ठित होती है। यह तो रासायनिक संश्लेषण है, इससे हटकर मनोवर्गणाओं का प्रभाव (Psychophore ) साइकोफोर द्वारा रसों का निर्माण अर्थात् रस वर्गणाओं का निष्पादन कराता है। उपरोक्त चिंतन को लेकर यदि हम विचारें तो हमारे इस 'प्रत्येक' शरीर के सहारे अनंतानंत 'बादर निगोद' जीवों का जीवन चल रहा है। सारे लाल रक्त कण, सारे श्वेत रक्त कण, सारी प्लेट्लेट्स, सारी त्वचा कोशिकाएं, सारे अवयव तथा कोशिकाऐं जिन्हें हम दान में देकर भी जी सकते हैं यथा नेत्र, गुर्दा, हड्डी, मज्जा, वीर्य और रज, cavities में प्रति पल जी- मर रहे संमूर्च्छन जीव और रासायनिक अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 35

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