Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 78
________________ छतरपुर से डॉ. रमा जैन ( सचिव अ. भा. दि. जैन महिला संगठन) भी इस टीम में सम्मिलित हो गई थीं। खजुराहो के श्रुत भण्डार का अवलोकन करने पर पाया कि वहाँ के शास्त्र सूची के अनुसार नम्बरों पर व्यवस्थित नहीं हैं। क्योंकि संभवतः अध्ययनार्थ लिये गये शास्त्र पुनः उसी नम्बर पर नहीं पहुँचे या एक वेस्टन से निकाले गये शास्त्र उसी वेस्टन में नहीं रखे गये या शास्त्रों को निकाल कर सुखाने के बाद पुनः यथावत् नहीं रखा जा सका होगा। यह सब देखकर निर्णय लिया गया कि कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के विशेषज्ञ पुन: 10-12 दिन के लिये खजुराहो जाकर शास्त्र भण्डार व्यवस्थित करेंगे तथा उनके साथ सहयोग के लिये खजुराहो प्रबन्ध समिति एक ऐसे व्यक्ति को भी बुला लेगी जिन्होंने पहले इस भण्डार का सूचीकरण किया हो या भण्डार की जानकारी रखते हों। खजुराहो प्रबन्ध समिति के मंत्री श्री निर्मल जैन से डॉ. अनुपम जैन के सतत सम्पर्क के उपरान्त दिनांक 19.10.2000 से 28.10.2000 तक के लिये मैं (डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज') और श्रीमती आशा जैन खजुराहो के भण्डार का सर्वेक्षण और उसे व्यवस्थित करने गये एवं 20 से 26 अक्टूबर 2000 तक खजुराहो में रहकर दोनों ने कार्य सम्पन्न किया । जो देखा / पाया इस ग्रंथ भण्डार की परिग्रहण पंजी (शास्त्र सूची) तीन थीं। प्रथम पंजी जिस विद्वान् ने भी तैयार की हो, उसमें बहुत मेहनत की गयी। शास्त्र संकलन के लगभग अन्तिम चरण में श्री पं. अजितकुमार जी जैन, द्रौणगिरि एवं पं. भागचन्द जैन 'इन्दु', गुलगंज फरुखाबाद से 223 पांडुलिपियाँ लाये थे। इनकी भी सूची एक अलग पंजी पर क्रमांक 1 से प्रारम्भ कर तैयार की गई। दिनांक 14.6.1996 से स्व. श्री पं. गोविन्ददास कोठिया, एम.ए., अहार एवं श्री पं. भागचन्द्र जैन 'इन्दु', गुलगंज ने यहाँ की पाण्डुलिपियों के पुनः सूचीकरण का कार्य प्रारम्भ किया । यह सूची पुरानी सूची से अलग एक तीसरी नयी पंजी पर क्रमांक 1 से प्रारम्भ की गई और यह पंजी भर जाने पर द्वितीय पंजी जिसमें 223 पांडुलिपियों के विवरण थे, उसमें आगे के विवरण दिये। इन्होंने नये नम्बर के साथ-साथ पुरानी पंजी का भी नम्बर दिया था। पुरानी पंजी में जो सूची थी, उसमें से इन्हें 103 ग्रंथ नहीं मिले। उन अनुपलब्ध नम्बरों के स्थान यथाक्रम इन्होंने अपने द्वारा बनाई पंजी में रिक्त छोड़े थे । 76 स्व. पं. कोठियाजी एवं पं. इन्दुजी, इन दोनों विद्वानों ने निःसन्देह बहुत मेहनत व त्याग किया है। क्योंकि प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के विवरण तैयार करना आसान नहीं है। हमने पाया कि ग्रन्थ यथा स्थान नहीं थे। वेस्टन पर नम्बर कुछ तथा उसमें ग्रंथ किसी अन्य नम्बर का था । D जिस वेस्टन में 5-6 ग्रंथ सूचीकृत थे, उसमें एक ग्रंथ था। D सूची में के 26-27 ग्रंथ एक साथ एक पोटली में और ऐसी 2 - 3 पोटलियाँ बनी थीं। एक बस्ते में दीमक से हटकर तिरुला की तरह और सफेद छोटी इल्ली की तरह दो प्रजातियों के कीड़े लगे मिले। इससे प्रतीत होता है कि नियमित देखभाल नहीं हो पा रही होगी। जो ग्रंथ किन्हीं अध्येताओं, साधुओं ने अध्ययनार्थ लिये होंगे वे उसी स्थान और उसी वेस्टन में नहीं पहुँच पाये होंगे और शास्त्रों को सुखाये जाने के बाद वे यथास्थान और उसी वेस्टन में नहीं अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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