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अनुरोध त्रा के प्रबन्धको से प्रार्थना
विभिन्न साहित्यकारों एवं इतिहासकारों ने पाठ्य पुस्तकों में जैन धर्म का प्रवर्तक भगवान महावीर को बताया है तथा कई पाठ्य पुस्तकों में जैन धर्म के 23 तीर्थंकरों के अस्तित्व को नकार दिया है एवं इसे मिथक - कथा जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए गढना बताया है। ऐसी करीब 30 पाठ्य पुस्तकें हैं, जिनमें जैन धर्म के बारे में भ्रामक तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं। जिसका संकलन डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर) ने एक लघु पुस्तिका में किया है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'प्राचीन भारत' के संदर्भ में मैंने कुछ दिनों पूर्व अपना निवेदन जैन धर्म के अध्येताओं के नाम प्रकाशित किया था, जिसके प्रत्युत्तर में मुझे भारत के कोने-कोने से पत्र व सामग्री प्राप्त हुई है। उन सब विद्वानों के प्रति मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ। अलवर के एक स्वतंत्रता सेनानी श्री महावीर प्रसाद जैन ने तो इस संबंध में एक लघु-पुस्तिका भी प्रकाशित की है। जिसका प्राप्ति स्थान निम्न
श्री दि. जैन साहित्य प्रकाशन समिति,
332, स्कीम नं. 10, अलवर (राज.) इस संबंध में दिनांक 11.6.2000 को दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर (मेरठ) में परम पूज्य गणिनीप्रमुख, आर्यिकाशिरोमणि, श्री ज्ञानमती माताजी के पावन सान्निध्य में राष्ट्र स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें काफी ठोस प्रमाण एवं सुझाव जैन धर्म की प्राचीनता के संबंध में प्राप्त हुए हैं। उक्त संगोष्ठी में भाग लेने वाले सभी सहभागियों एवं सहयोगियों का भी मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। लेकिन मेरे मन में एक पीड़ा है कि ऐसा सब कुछ करने की आवश्यकता क्यों उत्पन्न हुई है? आज भी कुछ इतिहासकार भगवान महावीर के निर्वाण के करीब 150 वर्ष पश्चात् 24 तीर्थंकरों की कल्पना किया जाना अपने लेखों एवं पत्रों में अंकित कर रहे हैं, ऐसा क्यों? कहीं हमारी भूल एवं अकर्मण्यता ही तो इसका कारण नहीं है कि हमने विगत लगभग 50 वर्षों में भगवान महावीर की ही जयन्ती मनाकर यह संदेश आमजन को नहीं दे दिया कि भगवान महावीर ही जैन धर्म के प्रवर्तक हैं? भगवान महावीर का 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव व्यापक स्तर पर मनाने का अर्थ भी तो कहीं ऐसा नहीं लगाया गया कि जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर ही हैं? अगले वर्ष मनाई जाने वाली 2600 वीं जयन्ती आमजन को जैन धर्म के बारे में क्या संदेश देगी? क्या भगवान महावीर की 2600 वीं जन्म जयंती समारोह को राष्ट्रीय स्तर पर मनाते समय हमें यह ध्यान नहीं रखना चाहिए कि भगवान महावीर के साथ-साथ जैन धर्म के अनुसार 24 तीर्थंकरों का भी प्रचार-प्रसार करें, उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डालें, साहित्य का प्रकाशन करें, आदि-आदि?
___मेरी समग्र जैन समाज के तीर्थ क्षेत्रों के प्रबन्धकों से विनम्र प्रार्थना है कि - 1. प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म - स्थल पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन अवश्य किया जावे। 2. मूलनायक भगवान की जन्मतिथि के दिन प्रतिवर्ष जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया जावे। भगवान
का पाण्डुक-शिला पर अभिषेक किया जावे एवं उसका समुचित प्रचार-प्रसार मीडिया-टी.वी., रेडियो, समाचार - पत्रों के माध्यम से किया जावे। 3. प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन - चरित्र के संबंध में एक लघु पुस्तिका हिन्दी, अंग्रेजी व स्थानीय भाषा
में प्रकाशित की जावे। 4. अतिशय क्षेत्रों पर भी ऐसे कार्यक्रम तैयार हों, जिन्हें इन्टरनेट पर प्रस्तुत किया जा सके। चम्पापुर
क्षेत्र के पदाधिकारी इस संबंध में धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्र का प्रचार इन्टरनेट पर प्रारंभ कर दिया है।
- खिल्लीमल जैन, एडवोकेट
23, विकास पथ, अलवर (राज.) अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
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