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हैं, कई पक्ष हैं और सत्य तक पहुँचने के अनेकानेक मार्ग हैं। अपनी आस्था और अपनी दृष्टि की सीमाओं में सभी सही हैं।
लेकिन इस परम शांति और विश्वजनीन प्रेम की अवस्था कैसे प्राप्त की जाये ? इच्छाएँ और उनकी तुष्टि, दूसरों के साथ मेरे सम्बन्धों का आधार नहीं बन सकती। जहाँ तक स्वयं का प्रश्न है, हमारी इच्छाएँ सिर्फ हमें बेचैन बनाती हैं। उन्हें पाने के लिये और जो पाया है उसे बचाये रखने के लिये हम चिंतित बने रहते हैं। अंतत: हम एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच जाते हैं, जहाँ उसका सुख भी नहीं ले पाते, जिसकी पहले कामना की थी और जिसे उस कामना और प्रयत्न के बाद पाया था। जहाँ तक दूसरों से सम्बन्ध के सन्दर्भ में इन इच्छाओं और उनकी तुष्टि की भूमिका है, उन सम्बन्धों और मित्र परिजनों को हम अपनी इच्छाओं की तुष्टि का माध्यम बनाने लगते हैं। उन्हें हम अपनी लालसाओं की पूर्ति के लिये, एक वस्तु या उपकरण बना देते हैं। हम उनके निर्वाह की कोशिश इसलिये करते हैं ताकि अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये, जब आवश्यकता मैं उनका इस्तेमाल कर सकूँ। इसीलिये जैनधर्म में अपरिग्रह का इतना ज्यादा महत्व है। यानि कुछ भी धारण नहीं करना, कुछ भी संचय नहीं करना, कुछ भी नहीं रखना। लेकिन यह अपरिग्रह एक मात्र लक्ष्य नहीं है। इसका प्राप्य है, इच्छाओं का विग्रह, क्षुद्र भावों पर नियंत्रण ।
पश्चिम में अहिंसा की बात करना आजकल एक फैशन बन गया है। वे उसे एक शक्तिहीन हथियार मानते हैं। अहिंसा की यह गलत अवधारणा है। अहिंसा एक जीवनशैली है। यह एक आदर्श समाज के चिंतन की अभिव्यक्ति है। जो अहिंसा में विश्वास करता है, वह हिंसा का प्रतिरोध करते समय भी उस हिंसा से अप्रभावित रहता है। यह अहिंसा बार-बार होने वाली हिंसा को सोख लेती है। यह निरन्तर विस्तृत होने वाली, सबको प्रेम में लपेट लेने वाली, प्रत्येक सजीव या निर्जीव वस्तु या प्राणी के प्रति अपने लगाव का अनवरत विस्तार है। क्रोध, वैमनस्य या प्रतिशोध की भावना इस अहिंसा का हिस्सा नहीं हो सकते।
प्रेम और अनुराग की यह भाषा आज के युवाओं से बेहतर कौन समझेगा ? अगर अहिंसा को विश्व अभियान बनना है तो इस अभियान का नेतृत्व युवाओं को थामना होगा। पर्यावरण की रक्षा के लिये, शांति के उत्थान के लिये उन्होंने धर्म, साम्प्रदायिकता और राष्ट्रीयता की क्षुद्र सीमाओं से बाहर निकलकर काम किया है, काम करने के जज्बे का परिचय दिया है। आज का प्रत्येक युवक एक विश्व नागरिक है। पुरुष हो या स्त्री, वह प्रेम की उस शाश्वत भाषा को समझता है। प्रेम, जो केवल अहिंसा से ही साध्य है। मैं विश्व के युवाओं को नमस्कार करती हूँ। मैं अहिंसा को नमन करती हूँ। मैं उस शाश्वत, विश्वजनीन, नैसर्गिक प्रेम में विश्वास करती हूँ और उसके निरन्तर विस्तार के लिये स्वयं को समर्पित करती हूँ।
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* चेयरमेन - टाइम्स आफ इंडिया प्रकान समूह, 7, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली- 110002
राष्ट्र की धड़कनों की अभिव्यक्ति
नवभारत टाइम्स
अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000