Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 80
________________ अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 1324 - 1328, 135, 1356, 1358 अलमारी नं. 7 - इसमें लगभग 250 ऐसे शास्त्र रखे गये हैं जिनके विवरण तैयार नहीं हैं। ये शास्त्र पहले पोटलियों में बंधे हए आलमारियों के ऊपर 'रफ' लिखकर के रखे हुए थे। हमने नये वेस्टन मंगवाकर ग्रंथों को अलग - अलग करके, अधिकांश के साथ क्षेत्र द्वारा प्रकाशित कार्ड लगा दिये हैं। कुछ वस्तुत: रफ हैं, वे भी इसी में हैं। इनके विवरण तैयार करने का कार्य शेष है। इसमें अधिक समय लगेगा। द्वितीय चरण में इसे भी पूर्ण करेंगे। उपरोक्त विवरण के साथ सभी अलमारियों के बाहर हमने स्लिपें लगा दी हैं जिससे शोधकर्ताओं / अध्येताओं को कोई कठिनाई न हो। . सभी अलमारियों में कुनैन की टिकिया डाल दी तथा अलमारियों के ऊपर रखे फालतू कपड़े, लकड़ी, किताबें हटवा दिये हैं। कतिपय सुझाव * अलमारी नं. 6 के नीचे के पाये अलमारी में धंसे हुए हैं अर्थात् वह क्षत है, बन्द नहीं होती है। इस कारण ग्रंथों को चूहे आदि क्षति पहुँचा सकते हैं। अत: उसकी मरम्मत करवा लेना चाहिये या बदल देना चाहिये। जब अलमारी बदली जाये तो उसके ग्रंथों को पुन: यथावत् अनुक्रम से रख दिया जाये। * ग्रंथ भण्डार वाले कक्ष में दो अन्य अलमारियाँ, एक सन्दुक में तथा कुछ बाहर क्षेत्र का अन्य सामान भी रखा है। हमारा सुझाव है कि इस कक्ष में हस्तलिखित शास्त्रों के अतिरिक्त अन्य कुछ भी सामान न हो; क्योंकि अन्य सामान के साथ - साथ ग्रंथों में भी कीड़े लगने की सम्भावनाएँ होती हैं। * जब कोई भी अध्येता/शोधकर्ता/मुनिराज ग्रंथ मंगायें तो केवल भण्डार और अलमारियां खोलकर छोड़ देने की बजाये, एक जानकार व्यक्ति स्वयं ग्रंथ निकलवा दे, उसका नम्बर एक रजिस्टर पर नोट करे और वापस मिलने पर वह ग्रंथ पूर्ववत् उसी जगह रखवा दे। * यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अमुक अधिकारी की स्वीकृति के बगैर ग्रंथ ग्रंथालय के बाहर नहीं जायेगा। * समय - समय पर भण्डार जरूर खोला जाये तथा दीमक आदि न लग जाये इसकी सावधानी बरती जानी चाहिये। ★ जो ग्रंथ सूचीबद्ध नहीं हो पाये हैं, उनकी सूची भी शीघ्र तैयार करवा ली जाना चाहिये। खजुराहो के एक सप्ताह के प्रवास के दौरान वहाँ के व्यवस्थापकों एवं स्थानीय अधिकारियों ने हमारे आवास. भोजनादि का उत्तम प्रबन्ध किया तथा ग्रंथ भण्डार के लिये जो वेस्टन, कुनैन - टिकिया, पिन, गोंद आदि सामग्री की मांग की वह तुरन्त उपलब्ध कराई। मैनजर श्री जी. एल. जैन ने हमारे द्वारा संशोधित सूची पंजी तथा षट्पाहुड़ ग्रंथ की फोटोकापी भी हमें नि:शुल्क प्रदान की। सभी पदाधिकारियों व व्यवस्थापकों के हम श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर तथा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर की ओर से आभारी हैं। पुनर्व्यवस्थित सूची का श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा प्रकाशन किया जा चुका है इसे कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के कार्यालय से रु. 200 = 00 में प्राप्त किया जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण और अप्रकाशित ग्रंथों का उल्लेख व परिचय अलग देंगे। * शोधाधिकारी-कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर - 452001 अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 78

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