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आख्या
अर्हत वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
चतुर्थ राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी उदयपुर, 9 - 12 नवम्बर 2000
- सुरेखा मिश्रा *
धर्म, दर्शन, विज्ञान शोध संस्थान एवं सम्पूर्ण जैन समाज, आयड के संयुक्त तत्त्वावधान में वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनंदीजी गुरुदेव के आशीर्वाद से प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी सुखाड़िया रंगमंच, टाउनहॉल, उदयपुर में अत्यन्त गरिमामय वातावरण में सम्पन्न हुई। संगोष्ठी में देश भर से पधारे लगभग 50 प्रतिभागियों ने आचार्य कनकनंदीजी द्वारा रचित ग्रंथ 'सर्वोदय शिक्षा मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में अपने शोध प्रस्तुत किये। संगोष्ठी का उद्देश्य शिक्षा, संस्कार, सदाचार के प्रचार-प्रसार, आचरण के माध्यम से व्यक्ति से लेकर राष्ट्र एवं विश्व में सत्य, समता, सुख-शांति की स्थापना करना था।
संगोष्ठी के पूर्व उदयपुरवासियों को एक अद्भुत बौद्धिक, ओजस्वी एवं अपने-अपने क्षेत्र में निष्णात दो बेजोड़ व्यक्तित्वों का चिरप्रतीक्षित संगम देखने व सुनने को मिला जब आचार्यरत्न कनकनंदीजी गुरुदेव एवं विश्वविख्यात वैज्ञानिक, खगोलभोतिकविद् जयंत नार्लीकर ने अति महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। दोनों ही एक दूसरे से मुलाकात करने के लिये बेहद उत्सुक एवं उत्साहित दिखे। चर्चा के दौरान आचार्यश्री ने डॉ. नार्लीकर से ब्रह्माण्ड से जुड़े कई सवाल पूछे, जैसे समय तथा आकाश वक्र क्यों होते हैं? विग बैंग थ्योरी में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति किस प्रकार मानी गई है? इसके फेल होने के क्या कारण हैं तथा विज्ञान इस विषय में क्या कहता है? ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति किस प्रकार मानी गई है? सापेक्षता सिद्धान्त के अनुसार दो दोस्तों की आयु समान होने पर भी यदि एक दोस्त ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर लौटता है तो दूसरा दोस्त उससे उम्र में बड़ा क्यों हो जाता है? आदि। डॉ. नार्लीकर ने बड़ी ही विनय एवं सहजता से उदाहरणों के माध्यम से अपनी बात रखी। इस दौरान आचार्य कनकनंदीजी ने अपने हृदय की वेदना रखते हुए कहा कि आज भारतवासियों के पास इतना अधिक ज्ञान होते हुए भी वे गरीब संतान सदृश हैं इसलिये मैं धर्म, दर्शन, विज्ञान और गणित
आदि विषयों में समन्वय करना चाहता हूँ, अत: ज्ञान को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने के लिये आप जैसे वैज्ञानिकों का सहयोग चाहिये। डॉ. नार्लीकर ने परस्पर विचार विमर्श करते रहने का वादा किया। इस अवसर पर डॉ. नार्लीकर का सम्मान तथा आचार्य कनकनंदीजी का साहित्य भी प्रदान किया गया।
संगोष्ठी का शुभारम्भ श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर
धर्मशाला, आयड से मंगल जिलाध्यक्ष महोदय को ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए विद्वत्जन एव कायकतागण
शोभायात्रा के साथ हुआ जो
दारनहॉल में पानी। संगोष्ठी के दौरान सभी प्रतिभागियों ने जैन धर्म के संबंध में विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में प्रकाशित गलत तथ्यों पर अपनी चिंता का इजहार किया तथा उसे हटाकर तथ्यपरक जानकारी जोड़ने की बात कही।
अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
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