Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ जा सकता है। भले ही जैन मान्यतानुसार 'निगोद' देखे, बांधे नहीं जा सकते। साधारण चक्षु से ये देखे नहीं जा सकते किन्तु इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से 2लाख से 10 लाख गुना किये जाने पर वे देखे जा सकते हैं किन्तु बांधे नहीं जा सकते। इनकी आयु की सीमा नहीं है क्योंकि ये मरते नहीं हैं। ये सरकते, चलते भी नहीं हैं मात्र संपर्क पाते ही रासायनिक क्रियाओं द्वारा आहार संजोने में जुट जाते हैं। इनमें बेक्टीरिया चलते फिरते नहीं हैं। जिस रेखा में ( खड़ी या आड़ी) विभाजित होते हैं उसी में फैलते प्रतीत होते हैं। इन्हें विस्तरण हेतु आहार चाहिये। मक्खी / मच्छरों के पैरों से ये लिपटकर भी तीव्रता से फैलते हैं। खुला मल, कटे फल, बिना ढंकी खाद्य सामग्री को ये दूषित करते हैं। धूलकणों के साथ उड़कर ये हमारे चेहरे, हाथों, सिर, नाक, आँख, मुँह और कपड़ों पर छा जाते हैं। हमारे 'सोला' वाले नियम ने इनसे हमें बहुत बचाया है। ये उबालने पर भी नष्ट नहीं होते। मच्छरों, मक्खियों के काटने से जो सूक्ष्म जीवी जीव (Parasites) पैरासाइट बनकर हमारे शरीर में आ जाते हैं वे निगोद नहीं (जैन मान्यतानुसार), त्रस जीव हैं, एमीबा की तरह। कभी-कभी ये पंखों पैरों के सहारे भी हमारे आहार तथा कटे फलों में आ सकते हैं। इन्हें उबालने पर नष्ट किया जा सकता है। इनकी भी प्रजनन प्रणाली निगोदियों से साम्य रखती हैं किन्तु ये प्राणीजगत का सूक्ष्मतम प्राणी हैं ठीक पानी में तैरते हरे कणों, एल्ली की तरह जो सूक्ष्मतम वनस्पति है। निगोद इन दोनों से अलग प्रोटिस्ट जगत का सूक्ष्मतम अंग कहे जा सकते हैं जो सूक्ष्म भी हो सकते हैं और बादर भी। जो नित्य भी हो सकते हैं और इतर भी । है न जैनाचार्यों की सूक्ष्म दृष्टि का कमाल ? सन्दर्भ सूची 1. नथमल टांटिया, दैट व्हिच इज, SLT 1994 2. मेंडलीफ की पीरियाडिक तालिका - रेमिंगटन फार्मास्यूटिकल साइंसेस, अंतिम पृष्ठ आचार्य उमास्वामी, तत्त्वार्थ सूत्र, 5 / 23, 24 3. 4. जैनेन्द्र सिद्धान्तकोष, भाग - 3, पृ. 511, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1996 Text Book of Chemistry, बोकड़िया 5. 6. आचार्य उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र, 5 / 25, 26, 27, 28 7. धवला, पुस्तक - 7, वर्गणाखंड, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर 8. आचार्य नेमिचन्द्र, वृहदद्रव्य सार संग्रह ( टीका, पृ. 84-85 ) 9. आचार्य कार्तिकेय स्वामी, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा, पृ. 234 10. आचार्य समन्तभद्र, रत्नकरंड श्रावकाचार 11. 12. कीमोथेरेपी, रेमिंगटन फार्मास्यूटिकल साइंसेज 13. स्नेहरानी जैन, साइंटिफिक कन्सेप्ट आप माइंड एण्ड जैन व्यू श्री अभिनंदन ग्रंथ, 1998, रींवा, म.प्र., पृ. 405 - 410 हार्पर की टेक्स्ट बुक आफ फिजियालाजी 14. आ. वट्टिकेर, मूलाचार, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन प्राप्त - 13.7.99 अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 कस्तूरचन्द कासलीवाल 47

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104