Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 71
________________ करते हुए साधक को मंत्र चुनने के विकल्प दिए हैं। - सामान्य बुद्धि से यहां एक प्रश्न आ सकता है कि किसी अक्षर 'अ' या 'आ' के ध्यान का क्या लाभ? इसका एक उत्तर शायद यह भी हो सकता है कि मन को जिस तरह भी आत रौद्र ध्यान से हटाकर स्थिर किया जा सकता है उस तरह स्थिर करना अपने आप में एक ध्यान है। मन की स्थिरता न केवल आत्मदर्शन हेतु आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है किन्तु आज कई प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि यह मन की स्थिरता कई रोगों की औषधि भी है। आध्यात्मिक भाषा में यह कहा जा सकता है कि मन की स्थिरता से राग-द्वेष मन्द होते हैं व पापकर्मों का पुण्य में संक्रमण होता है जिसमें आत्मविकास के अतिरिक्त रोगों का क्षय भी हो सकता है। ज्ञानार्णव में आचार्य शुभचन्द्र कहते हैं अवर्णस्य सहस्रार्द्धं जपन्नानन्दसंभृतः। प्राप्नोत्ये कोपवासस्य निर्जरां निर्जिताशयः ॥ 38.53 ।। अर्थ : जो अपने चित्त को वश में करके आनन्द से 'अ' इस वर्ण मात्र का पांच सौ बार जप करता है, वह एक उपवास निर्जरारूप फल को प्राप्त होता है। इसी ग्रन्थ में 41 वें सर्ग में आचार्य शुभचन्द्र ने यह वर्णित किया है कि धर्म ध्यान के प्रभाव से भौतिक सुख सामग्री, निरोग शरीर, अहमिन्द्र, सुरेन्द्र व परंपरा से मोक्ष प्राप्ति होती है। 18 भाग 2 : सामान्यजन ध्यान का लाभ कैसे लें ? 19 जैनागम के अनुसार धर्म ध्यान तो ज्ञानी सम्यग्दृष्टि के ही संभव है। प्रश्न यह उठता है कि जैसे सूर्य का उदय होने के पहले ही ऊषाकाल में प्रकाश होने लगता है या रात्रि में भी एक दीपक से अंधकार में थोड़ी कमी हो जाती है उसी प्रकार एक सामान्य व्यक्ति जिसके सम्यक्त्व की किरण अभी प्रकट नहीं हुई है वह इस ध्यान की चर्चा का लाभ मिथ्यात्व की रात्रि में भी किस प्रकार ले सकता है इच्छाओं एवं वासनाओं की चंचलता को रोककर किसी एक शब्द या मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करने से लाभ संभव है ऐसा पश्चिम जगत में कई प्रयोगों से प्रमाणित हुआ है। प्रिंसटन विश्वविद्यालय, अमरीका की पैट्रिशिया कैरिंगटन' ने यह बताया कि ध्यान के भौतिक लाभ तो थोड़ा ध्यान करने से भी होते हैं; किन्तु प्रतिदिन एक घंटे से अधिक ध्यान करने पर व्यक्ति आध्यात्मिक होने लगता है। पश्चिम में ध्यान का भौतिक लाभ आज लाखों व्यक्ति ले रहे हैं। हजारों लेख व दर्जनों पुस्तकें ध्यान के बारे में पश्चिम में उपलब्ध हो रही हैं। जीवनोपयोगी जो भी पत्रिकाएँ अमेरिका में प्रकाशित होती हैं उनके लगभग प्रत्येक अंक में ध्यान की शिक्षा किसी न किसी रूप में होती है। कई अनुभवी आधुनिक एवं पुरातन विद्वान् ध्यान के बारे में विभिन्न विधियाँ बताते हैं। जैसे वस्त्र कई प्रकार के होते हुए भी यह विशेषता रखते हैं कि वे शरीर को ढकते हैं व सर्दी-गर्मी से रक्षा करते हैं, उसी प्रकार ध्यान की विधियों की भी मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित होती हैं - 1. आर्त्तध्यान में कमी यानी अपनी परेशानियों, समस्याओं व अपनी इच्छाओं के चिन्तवन में कमी। 2. रौद्रध्यान में कमी यानी पाप कार्यों की सफलता के चिन्तवन में कमी व भौतिक उपलब्धियों के नशे में कमी। अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 69

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