Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 44
________________ जाता है मानों कपड़ों पर तेल लग गया हो। ये केन्द्र अपनी-अपनी क्षमतानुसार कार्माण वर्गणाओं को आसपास से ही (कहीं दूर से नहीं) चुन-चुन कर स्थिति, प्रकृति, अनुभाग और बंध के अनुसार क्षेत्रीय संपर्क आ रही वर्गणाओं में से चुन-चुन कर खींचकर बांध लेते हैं। धीरे-धीरे समय बीतते इस बंध की प्रगाढ़ता में ढील आती है। वे बंधी वर्गणाएं झड़ती हैं किन्तु साथ ही अपना कर्मफल भी चखाती हैं। अच्छी से अच्छी आहार वर्गणा भी दूषित से दूषित मल वर्गणा बन जाती है। स्वाद से ग्रहण की गई वर्गणा भी घोर कष्ट को देते हुए जा सकती है इसे जैन सिद्धान्त अत्यंत भलीभांति जानता है। हमारे सम्पूर्ण शरीर में जो संवेदना है वह ऐन्द्रिक होकर भी मात्र शारीरिक (Somatic तथा Autonomic और Reflex) आत्मा के अस्तित्व पर आधारित है। क्योंकि आत्मा सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है, इसी कारण सारे शरीर में हमें संवेदन प्राप्त होता है। उसी अंग विशेष में प्रतिक्रिया होती है जहाँ संवेदना प्राप्त होती है। सारे जीवन भर हमें उसी एक मैं का बोध इस शरीर में होता है जो बचपन में भी था और यौवन में भी। उसी मैं की स्मृतियों में पिछली घटनाओं को लेकर आर्तध्यान और रौद्रध्यान चलता है। जब वह इस शरीर को छोड़कर चला जाता है तब शव ना तो कुछ सुनता है ना प्रतिक्रिया दर्शाता है। वह मन जो इस शरीर और आत्मा पर भी हावी होना चाहता है ना तो वह दिखाई देता है ना ही आत्मा दिखाई देती है। ( मस्तिष्क 1. मुंर में पानी पाना २. भूख खुलना 3. उत्साह बाना भावभन और भावों का पोदलित प्रभाव / रस निर्माण और साव चित्र क्रमांक 12 (चित्र- 12) प्रत्येक 'इच्छा' जो मन से उठती है वह वर्गणा रूप 'भावमन' द्वारा फेंकी पुद्गल की फुहार है। यह वर्गणा अति विशाल, महास्कंध सी होती हैं। इसके स्वभाव को आधुनिक विज्ञान 'कीमोथेरेपी' 12 के अन्तर्गत 'ताले- चाबी' सा साम्य रखने वाले 'साइकोफोर' लक्षणों से पहचानता13 हैं जो 'प्लेसबो' औषधि के बाद प्रकट होते हैं। जब हलचल करती सूक्ष्म वर्गणाएं जैविक रूप में एन्थ्रेक्स का संक्रमण रूप फलित हई तब उनपर प्रभाव दर्शाने वाली अनेकों रासायनिक वर्गणाओं का परीक्षण किया गया। मात्र वही वर्गणाएं जो ताले- चाबी' जैसा साम्य रखती थीं उपयोग दर्शा सकीं। बाद में थोड़े-थोड़े रासायनिक बदलाव से पाया गया कि रसायन का 'कीमोफोर' ही उस विशेषता का कारण था। राबर्ट कॉख ने तब रोगों को परिभाषित किया। उस परिभाषा के अनुसार (1) जिस रोग विशेष के एक से लक्षण होंगे,(2) उनका संक्रामक जीवाणु एक सा ही होगा, (3) वह एक से ही जीवों पर रोग आक्रमण करेगा। इसी सिद्धान्त को ध्यान में रखकर बिगड़ती शराबों को जर्मनी और फ्रांस में संभाला गया, महामारियों को रोका गया, प्रसूताओं को सुरक्षा दी गई। औषधियों अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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