Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 40
________________ विकार, इनके उपयोग आदि सभी खोजे गये हैं, किन्तु अभी भी अति विशाल संसार अनखोजा पड़ा है क्योंकि अति सूक्ष्म है। ये कुछ 'एक कोशीय' से लेकर 'बहुकोशीय' भी हो सकते हैं। कुछ में उनकी संरचना 'संपुष्ट और स्पष्ट है, उन्हें यूकेरियोट्स ( सच्चा सूक्ष्मजीवी) / Eucaryotes कहा जाता है। कुछ में 'संरचना ' ' अस्पष्ट तथा भ्रामक' है उन्हें Procaryotes / प्रोकेरीयाट्स (विकास लेता सूक्ष्म जीवी) कहा गया है। इनकी विशेषता है कि इनमें 'जीव रस' (Proto Plast ) पाया जाता है (देखें चित्र - 6 ) । सूक्ष्मजीवी निगोध स्पष्ट ड्यूकेरियोट्स 38 कॉफी बेम्टीरियोफेज लायसोमेनी मे कोशिका भा . न्यूक्लीओलस . सैलवाल हि बेसीलस 9. वायरस कण रोगी शिशु कोशिका में अचानक उभरता वायरस न्यूक्लीयस साइटोप्लाज्म चित्र क्रमांक 6 किन्तु कुछ ऐसे भी हैं जिनमें 'जीव द्रव' नहीं पाया जाता। वे जीवन प्रक्रिया (Metabolism) नहीं दर्शाते (चित्र - 7 ) बल्कि उनका जीवन पराश्रित होता है जिसे लायसोजैनी (Lysogeny ) कहा जाता है। पराश्रित वायरसों द्वारा "लायसोलेनी" O अस्पष्ट वायरस वायरस ग्रसित बेल्लीक चित्र क्रमांक 7 - प्रोकेरियोट्‌स वातावरण में वायरस का भरण और बिखराब वायरस की खोखली रोगी बेस्सरिया विभाजित रोगी बेक्टीरिया रोगी शिशु बेक्टीरिया अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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