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कर्मों के उदय से प्राप्त यह हमारा औदारिक शरीर निगोदों की उपस्थिति से 'सप्रतिष्ठित' है। शरीर के रक्त में उपस्थित लाल कण, श्वेत कण, प्लेटलैट्स, त्वचा कोशिकाएं, पराजीवी सूक्ष्मजीव, अन्य जीव, केश, नख आदि कोशिकाएं भी हैं। अत: 'प्रत्येक' होकर भी शरीर 'सप्रतिष्ठित - प्रत्येक' हैं। स्वयं निगोद का शरीर भी अप्रतिष्ठित /सप्रतिष्ठित सम्भव है। यथा 'बेक्टीरियोफेजेस' जिनमें वायरस लायसोजेनी करते हैं। "निगोद रहित प्रत्येक वनस्पति' वह पौधे हैं जो न तो कलम किये जाकर रोपे जा सकते हैं ना ही जिन्हें उनके पंचांग में से किसी भी अंग द्वारा उगाया - बढ़ाया जा सकता है। यथा खैर का वृक्ष, धनियाँ, मैथी के पौधे।
उपरोक्त दर्शायी गई 23 वर्गणाएँ हैं जिनमें से मात्र पांच (आहार वर्गणा, तैजस वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनोवर्गणा तथा कार्माण शरीर वर्गणा) जीवों के द्वारा ग्रहण योग्य हैं। ये सभी अनंतप्रदेशी हैं। शेष बचने वाली त्रिलोक संस्थान में ठहरी हुई चार A B C D प्रकार की ध्रुवशून्य वर्गणाएँ हैं। इनमें कुछ दृष्ट हैं कुछ अदृष्ट। हमारे जीवन के सम्पर्क में आने वाली इन वर्गणाओं (23) का बहुत महत्व है। कुछ हमारे मकान / आवास उपयोगी वस्तुओं आदि रूप हैं कुछ लौकिक जड़ (धातु, पत्थर, मृदा) हैं। कुछ अदृष्ट हैं।
हम श्वांस लेते हुए जो हवा फेफड़ों में खींचते हैं उसमें 1/5 भाग ओषजन रहती है शेष अन्य वायु अंश को हम नाइट्रोजन कहतें हैं भले ही उसमें अन्य भी शामिल रहती हैं। शुद्ध प्राण वायु आक्सीजन तो हमें गैस सिलिंडरों से ही मिल सकती हैं।
प्रत्येक ओषजन परमाणु दो अणुओं से बनी एक वर्गणा है या हम कहें कि एक स्कंध है क्योंकि वह दो अणु वर्गणाओं से बना है। प्रत्येक अणु वर्गणा श्वांस हेतु लाल रक्त कणों द्वारा उपयोग की जा सकती है। सैकड़ों हीमोग्लोबिन परमाणु एक-एक रक्त कण में स्थित हैं। फेफड़ों की रचना जिन झिल्लियों से होती हैं उनमें अत्यंत बारीक रक्त नलिकाओं का जाल रक्त को हल्की त्वचा के अंतर में रख ओषजन पकड़ने में मदद करता है। कोशिका में बैठे एन्जाइम्स (Enzymes) इस प्रक्रिया में वाहक का काम करते हैं और ओषजन लेते हुए कार्बन मोनोआक्साइड बाहर फिंकवा देते हैं। शरीर की अंतरतम कोशिका में इन्हीं एन्जाइम्स के सहारे रक्त कण ओषजन पहुँचाते तथा उत्पादित वायु - मल बाहर लाते हैं। घुलनशील मल गुर्दो, पसीने की ग्रंथियों, नाभि तथा अन्य मार्गों से तथा वसा में घुलनशील मल कान तथा आंतों द्वारा बाहर निष्कासित होता है। अपने शरीर से जनित घातक वर्गणाएँ ही कभी - कभी गुर्दे फेक नहीं पाते। इसलिये रक्त चाप, मधुमेह और अन्य विकारजन्य रोग हो जाते हैं - मांसाहार करने वाले मनुष्यों पर तो उन मांसज वर्गणाओं का भी बोझ पड़ता है इसीलिये मांसाहार को अब विज्ञान भी मान्यता नहीं देता (चित्र - 4 तथा चित्र-5)। श्वांस प्रक्रिया में कार्य करने वाले प्रत्येक परमाणु के पास स्पर्शबोध है जिसके कारण सारी रासायनिक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। एक लाल रक्त कण के पास सैकड़ों ओषजन ढ़ोने वाले परमाणु हैं तथा प्रति धड़कन, प्रति श्वांस (9x1) ऐसे करोड़ों रक्त कण फेफड़ों में पहँचाये जाते हैं जो ओषजन पकड़ते हैं। ये सब बादर निगोद वर्गणाएँ कही जा सकती हैं जिनकी 'आयु' अलग - अलग रहती हैं।
ओषजन वाय-परमाण स्वयं एक बादरनिगोद वर्गणा है, उसका टटना ही उसकी मृत्यु है तथा कार्बाक्सी हीमोग्लोबिन भी इसी प्रकार स्पर्श बोध वाली बादर निगोद वर्गणा है जो टूटकर मरती है। उसी क्षण अन्य वर्गणाओं वाले निगोदों का जन्म होता है। इसी
अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000