Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 34
________________ अस्तित्त्व भी रखते हैं अन्यथा इनकी वातावरण में घोर कमी आ जाती। इन प्रत्येक परमाणुओं को ++ > H+H - H: H Ha उदजन परमाणु २. उदजन अणु चित्र संख्या 3 जैन दृष्टि से 'वर्गणा' माना जाएगा। स्थिरता पाना इस पुद्गल द्रव्य का मूल लक्ष्य है। यही प्रकृति का सिद्धान्त है और यही जीव द्रव्य का भी सिद्धान्त है। समूचे ब्रह्माण्ड की हलचल की सारी उठापटक मात्र स्थिरता पाने की कोशिश में ही बनी हुई है। अणु - अणु में जब तक स्थिरता नहीं है, वह स्पंदित है। उसके केन्द्र में न्यूट्रान, प्रोटान होकर भी अधूरापन, अस्थिरता है। लगातार इलेक्ट्रोन सनसनाते हुए चक्कर लगा रहे हैं ठीक ब्रह्माण्ड में चक्कर लगाते हुए ग्रहों की तरह। सर्व शांत अणु जो परमाणु वर्गणा बना चुके हैं, ठोस (पृथ्वीकायिक) का रूप ले चुके हैं। कुछ जो अब भी शांत नहीं हैं, द्रव (जलकायिक) का रूप हैं तथा वे जो अब भी अशांत और क्रियात्मकता पा रहे हैं, वे वायुरूपी गैसे हैं। इनमें से भी अनेक ऐसे भी हैं जिन्हें आतुरता से वास्ता ही नहीं, वे वायुकायिक होकर भी निष्क्रिय हैं। मेंडलीफ तालिका इन सबों को सरगम के5 स्वरों सा दर्शाती है। धरती में खनिजों का अस्तित्त्व, शुद्ध धातुओं - पीतल, तांबा, चांदी, सोना, लोहा, एल्यूमीनियम आदि इसी 'वर्गणा' बनाये जाने वाले सिद्धान्त पर आश्रित हैं। परमाणु कभी टूटकर अणुओं में बिखर जाते हैं और बढ़ी प्रतिक्रियात्मकता के आधीन रासायनिक क्रिया कर मिश्र धातुएं बना लेते हैं। या कभी रासायनिक संयोग करके लवण और क्षार भी बना लेते हैं। जब - जब परमाणु टूटता है, इलेक्ट्रोन चंचल होते हैं। इस चंचलता में कभी इलेक्ट्रान चंचलतावश बाहर भी फिंक कर अचानक केन्द्र पर ऐसा बोझ डालते हैं कि केन्द्र भी बिखराव में आने लगता है। इससे 'न्यूक्लीयर ऊर्जा' पैदा होती है, न्यूट्रोन टूटता है, फोटोन फिंकते हैं, प्रोटान बिखरते हैं और अणु की आणविक शक्ति प्रदर्शित होती है। आज अनेकों शक्तियों के अलग - अलग उपयोग हो रहे हैं, अणुशक्ति परमाणु शक्ति, रेडिएशन, एक्स - रे आदि से विज्ञान ने भरपूर लाभ पाये और अज्ञानता पूर्ण, प्रमादवश दुरुपयोग किये हैं। जैन विज्ञान अणु और परमाणु में भेद नहीं मानता क्योंकि अणु अथवा परमाणु किसी भी विभागीय द्रव्य के सूक्ष्मतम 'अविभाजीय' अंश माने गये हैं। इस प्रकार जैन परिभाषित अणु/परमाणु, विज्ञान परिभाषित अणु से बहुत-बहुत सूक्ष्म है। वह वर्गणा नहीं इकाई है अत: उसे देखा अथवा बाधित नहीं किया जा सकता। अनेक समान स्वभावी अणु मिलकर वर्गणा बनाते हैं यथा वायु वर्गणाएँ, द्रव वर्गणाएँ। वर्गणाएँ मिलकर स्कन्ध बनाती हैं। स्कंधों में अनंत अणु भी हो सकते हैं। आकाश ऐसा ही एक स्कंध है जिसमें अनंतानंत प्रदेश हैं। 'संघात तथा भेद से अणु उत्पन्न होते हैं।' आचार्य उमास्वामी ने तत्वार्थसूत्र में लिखा अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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