Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 23
________________ सबसे अन्त की प्रतिमा के मस्तक सहित ऊपर की शिला तथा दूसरी प्रतिमा के प्रभावल से ऊपर भाग की शिला (गुफा की दीवार) टूटी हुई है जिससे दुन्दुभि वादक, गगनचर, छत्रत्रय और अशोक वृक्ष का कोई विश्लेषण नहीं किया जा सकता है (चित्र संख्या 7 एवं 8)। विशेषत: - मध्य प्रतिमा से बाईं और अन्तिम से दूसरी प्रतिमा के प्रभावल में मस्तक के दोनों ओर तेज की प्रतीक प्रज्ज्वलित अग्नि का अंकन है। प्रभावल में अग्नि की लपटों का शिल्पांकन इस क्षेत्र की अन्य किसी प्रतिमा में नहीं किया गया है। एक और भित्ति प्रतिमा इस द्वितीय भग्न गुफा के एकमात्र पूर्व - दक्षिणी द्वार से प्रवेश करने पर बाएँ तरफ एक पदमासन प्रतिमा शिल्पित है। यह प्राय: भग्न है, इसके पादपीठ में चक्र, सिंहासन के सिंह द्वय, द्वि-जिन और चॅवरधारियों के कुछ भाग दृष्टिगत होते हैं। ऊपर अशोक वृक्ष की उपरिम सपत्र डालियों का अंकन सुरक्षित है। पादपीठ के नीचे दाहिनी ओर एक मानवाकृति कुछ झुकी हुई शिल्पित है। वर्तमान स्थिति - हमने इन गुफाओं का नौ बार सर्वेक्षण किया है। इस दूसरी गुफा में जैन भित्ति मूर्तियां होने से न तो इसकी तरफ पर्यटकों को आकृष्ट किया जाता है और न ही इसकी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था है। लकड़हारे प्राय: यहाँ की मूर्तियों को पत्थरों से क्षति पहुँचाते रहते हैं। हम तो जब भी यहाँ दोबारा गये, यहाँ की जैन मूर्तियों में कुछ न कुछ क्षति पहुँचाई गई देखी। इस गुफा में अनेक पुरातात्त्विक छोटे- छोटे लेख हैं, लेकिन उन्हें लोग कभी - कभार खुरचते रहते हैं। समय - इस दूसरी गुफा में निर्मित मूर्तियाँ विक्रम की चौथी शताब्दी की हैं। इसमें निर्मित सभी मूर्तियों के आसन के निकट दोनों तरफ दो मूर्तियाँ और होने से इन्हें त्रितीर्थी कहा जा सकता है। चौथी शती की एक त्रितीर्थी नेमिनाथ जिन प्रतिमा मथुरा के कंकाली टीला से प्राप्त हुई थी जो अब लखनऊ संग्रहालय में प्रदर्शित है, उस मूर्ति से यहाँ कि मूर्तियों के अंकन में काफी साम्य है। इन मूर्तियों और गुफा के विषय में मत दिये गये हैं कि 'सोनभद्र गुफा की ये मूर्तियाँ तथा शिलालेख गुप्तकालीन हैं, यह गुफा मौर्यकाल में बनी थी।' _इस तरह सोनभद्र (सोन भण्डार) गुफाओं के अध्ययन से कहा जा सकता है कि ये गफाएँ अत्यन्त महत्व की हैं. अति प्राचीन हैं और जैन मनि वैरदेव या वीरदेव से सम्बन्ध रखती हैं तथा इनमें संक्षेपत: निम्नलिखित विशेषताएँ हैं - - जटाजूट और सर्पफणाच्छादन के अतिरिक्त अन्य चिन्हों के अंकन के प्रारम्भिक काल का द्योतन होता - सभी जिनों के चँवरधारियों के दाहिने - दाहिने हाथ में चँवर हैं। - एक प्रतिमा के सर्पकुण्डल्यासन, सर्पकुण्डलिपृष्ठासन, सर्पफणाच्छादन और पादपीठ में गज - द्वय का अंकन। • एक प्रतिमा के प्रभावल में प्रज्ज्वलित निधूम अग्नि। . सभी प्रतिमाओं के पादपीठ में दो - दो लघु- जिन का अंकन। अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000

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