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वर्ष - 12, अंक - 4, अक्टूबर 2000, 27 - 47 अर्हत् वचन । (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) आधुनिक विज्ञान, वर्गणाएँ तथा निगोद
-स्नेहरानी जैन*
जैन मान्यतानुसार दर्शाए गये छहों द्रव्यों - आकाश (Space), काल (Time), धर्म (The medium of Motion), अधर्म (Gravity to help Rest), पुद्गल (Matter), तथा जीव (Vital Energy) में से पाँच को आधुनिक विज्ञान संबंधी शोधों ने काफी सीमा तक स्वीकारा है क्योंकि सफलताएँ उनके पक्ष में आ चुकी हैं। इन पाँचों संबंधी सिद्धान्त भी पुष्ट हो गये हैं। अब आकाश की असीम गहराइयों को समझा जाने लगा है। काल को खण्डों में बांट उसे भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ-साथ वर्षों, मासों, सप्ताहों, दिनों, घंटों, मिनिटों, सेकंडों में तो बाँधने का प्रयास किया ही है, तत्संबंधी गणनाएँ भी ग्राफ पेपर के सहारे सहज सुलभ कर ली हैं। काल के परिवर्तन/वर्तना संबंधी सिद्धान्त को पुद्गल परमाणुओं पर प्रभाव के आधार से लक्ष्य करके ताप तथा दबाव संबंधी सहभागीपने को भी समझा जाने लगा है। औषधियों के प्रभाव काल की गणना पर ताप, प्रकाश, ओषजन आदि का सीधा संबंध जानते हुए उनकी प्रायोगिकता को सुरक्षा मिली है। इसी प्रकार रेडियो- एक्टिव औषधियों के खुराक संबंधी गणित द्वारा इन्हें रोगियों में सुरक्षित और सही मात्रा में उपलब्ध कराने के साधन भी बन गये हैं। हलन- चलन के माध्यम तथा ठहराव के माध्यम को भी समझा जाने लगा है और पुदगल के रहस्यों को भी कुछ सीमा तक समझा जाने लगा है। यह सब संभव हुआ है भौतिकी (Physics) के माध्यम से। वहीं पुद्गल के रसायन रहस्य को रसायन शास्त्र (Chemistry) में प्रस्तुत किया गया है।
पुद्गल के अस्तित्व को जड़ और जैविक दोनों ही जगत में वर्तमान होने के कारण भौतिकी और रसायन से अलग जीवविज्ञान (Biology) में भी अध्ययन बांटना आवश्यक समझा गया है जो विस्तारमयी तीन अलग-अलग शाखाओं में जाना जाता है। वे हैं - वनस्पति विज्ञान (Botany) प्राणीविज्ञान (Zoology) तथा सूक्ष्म जीव - विज्ञान (Micro biology)।
जड़ और जीवन को बतलाने वाले तीन बिन्दु भी सर्वमान्य घोषित हैं - (1) संवेदना की प्रतीक प्रतिक्रियात्मकता (Reactivity), (2) आहार वर्गणाओं का उपयोग और मल का निष्कासन (Metabolism) तथा (3) प्रजनन (Reproductibility)| किन्तु इतनी विशेष जानकारियों के बाद भी जैन शासन द्वारा समझाया गया मूल आधार, छठवां द्रव्य 'जीव' अभी आधुनिक विज्ञान की पकड़ से कोसों दूर है। विज्ञान समझ नहीं पा रहा है कि शरीर से अदृष्ट (गायब) होने वाला वह कौनसा तत्त्व है जो उसे शव बनाकर छोड़ जाता है। इस शरीर में वह कहाँ है? कैसा है? वह, जो जब तक रहता है दिमाग के माध्यम से बुद्धि का प्रदर्शन करते हुए सुनना, समझना, जानना, प्रतिक्रिया देना आदि तो करता है, किन्तु उसे वह न तो परिभाषित कर पाता है ना ही उपेक्षा कर छोड़ सकता है। अत: विज्ञान ने उसे जटिलता (Complexity) कहकर टालने के प्रयास किये हैं। भले ही इस दिशा में खोजें जारी हैं जिनसे जीन्स संबंधी रोचक जानकारी भी प्रकाश में आई है। चिकित्सक भी हारकर अन्तत: रोगी का जीवन किसी 'अज्ञात शक्ति' के सहारे छोड़ देते हैं।
* पूर्व प्रवाचक-भेषज विज्ञान, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर। निवास : C/o. श्री आर. के. मलैया,
स्टेशन रोड़, सागर (म.प्र.)