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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष - 12, अंक - 4, अक्टूबर 2000, 17 - 26 राजगृह की सोनभद्र गुफा
एवं उसका पुरातत्व - महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज' *
___पुराकाल में पहाड़ों में शिलाओं को काटकर गुफा निर्माण को अत्यन्त महत्व दिया जाता था। ऋषि, तपस्वी जंगलों, पर्वतों में विचरण करते थे और प्राकृतिक रूप से बन गई गुफाओं को अपना आवास बनाते थे। वे गुफाएँ उनकी आत्म साधना में सहायक होती थीं, कारण कि शांतिमय वातावरण के साथ - साथ उनमें सर्दियों में गरमी और ग्रीष्म ऋतु में शीतलता स्वाभाविक रूप से रहती थी। इस तरह की विशेषताएँ देखकर राजाओं, सामन्तों, धर्माधिकारियों ने पहाड़ों, पहाड़ियों की चट्टानों को काटकर गुफाओं का निर्माण करवाया, जिनका उद्देश्य यति - मनियों को शान्तिमय विश्रामस्थल उपलब्ध कराना रहा है। शिलाओं को कटवाते हुए उन्हें तरासने का विचार आया और कुशल कारीगरों द्वारा सम्बन्धित विभिन्न अंकन करवाये। अंकन इतने महत्वपूर्ण करवाये कि वे आज अपना सम्पूर्ण इतिहास संजोये हुए
जो गुफाएँ जैन संस्कृति और पुरातत्त्व से सम्बद्ध हैं वे गुफाएँ हैं - बराबर पहाड़ी, नागार्जुनी पहाड़ी, उदयगिरि - खण्डगिरि, पभौषा, जूनागढ़, विदिशा, तेरापुर, श्रवणबेलगोला, सित्तन्नवासल, ऐहोल, ऐलोरा, दक्षिण त्रावणकोर, अंकाई - तंकाई, ग्वालियर, कुलुआ पहाड़ और राजगृह की गुफाएँ। सोनभद्र गुफा
इनमें राजगृह की सोनभद्र (सोनभण्डार) गुफा पुरातात्त्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह गुफा राजगृह के वैभार पर्वत के पूर्व - दक्षिण पहाड़ मूल में खुदी है, जो नगर के दक्षिण - पश्चिम की ओर गया मार्ग पर अवस्थित है। यह गुफा प्राचीन राजगृह नगर परिधि के अन्दर और नवीन राजगृह की नगर परिधि के बाहर है।
सोनभद्र या सोन भण्डार नामक यह गुफा 34' लम्बी, 17' फुट चौड़ी और 11.5' ऊँची है। कहते हैं तत्कालीन मगध नरेश जरासंध ने अपना सोने का खजाना इस गुफा में जमा किया था जो उसने मगध और आस-पास के जंगली राजाओं से इकट्ठा किया था।' गुफा के आगे मुख्य मण्डप या बरामदा था जो खम्बों पर टिका था। अब स्तम्भों की केवल चूलें रह गई हैं। इस प्रकार मुखमण्डपयुक्त गुफा की वास्तु शैली लगभग 5वीं शती ई.पूर्व में ही अस्तित्त्व में आ चुकी थी। अभिलेख - इस गुफा में जाने के द्वार की दाहिनी तरफ ब्राह्मीलिपि में एक शिलालेख उत्कीर्णित है। (चित्र संख्या 1) दो पंक्तियों के शिलालेख को इस तरह पढ़ा गया है -
निर्वाण लाभाय तपस्वि योग्ये शुभे गुहेऽर्हत्प्रतिमाप्रतिष्ठे।
आचार्यरत्नम् मुनि वैर देव: विमुक्तये कारय दीर्घ तेजः॥ निर्वाण की प्राप्ति के लिये तपस्वियों के योग्य और श्री अर्हन्त की प्रतिमा से प्रतिष्ठित शुभ गुफा में मुनि वैर देव को मुक्ति के लिये परम तेजस्वी आचार्य पद रूपी
* शोधाधिकारी-कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584 महात्मा गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर -452001