Book Title: Arhat Vachan 2000 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ को प्रस्तुत किया गया था। उस लिपि की प्रकृति की सीमित पहचान के रहते, सन्दर्भों को पूर्ण स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करना कष्ट साध्य था। फिर भी एक प्रयास किया गया। इस शोधपत्र को बाद में ऋषभ सौरभ पत्रिका के वर्ष 1992 के अंक में प्रकाशित भी किया गया। मगर दुर्भाग्य से उस शोधपत्र में सम्मिलित वाचन प्रयासों के उदाहरण प्रकाशित पत्र में सम्मिलित नहीं किये गये। 10 उसी क्रम में जैन विषय वस्तु के वाचन के कुछ उदाहरण अन्यान्य शोधपत्रों में स्थान पाते रहे, उनमें से कुछ शोधपत्र प्रकाशित भी हुए हैं। ऐसे ही कुछ चुने हुए वाचन प्रयासों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं। 1. अपरिग्रह 11, सील क्रमांक 4318, 210001 प य भर (ण) (EUD) 12 U 2. जो परिग्रहों को नियंत्रित करता है। ( 25090) व्यक्ति सिर पर त्रिरत्न धारण किये हुए है और दो स्तम्भों के मध्य में स्थित है। सील पर उकेरा गया चित्र विषय का चित्रात्मक अलंकरण प्रतीत होता है। यहाँ व्यक्ति सौम्य भाव लिये नग्नावस्था में कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। उकेरे गये चित्र का सम्पूर्ण वातावरण जैनों के समान श्रमणिक प्रतीत होता है। निग्रंथ 12, सील क्रमांक 4307, 210001 य रह गण्ड / ग्रंथि जिसने बंधन त्याग दिये हैं। ( 25090) उपरोक्त के समान चित्र में व्यक्ति को नग्न अवस्था में कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है जो पत्तों युक्त गोलाकार द्वार में दिखाया गया है। पुनः चित्र में जैनों के समान श्रमणिक परम्परा के एक मुनि की चित्रात्मक अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। 3. योगाभ्यास 13, सील क्रमांक 2222, 104701 य शासन कर्तृ जो (स्वयं पर) शासन करता है। सींग धारण किये एक व्यक्ति तख्त जैसे आसन पर विराजमान है। यह चित्र स्पष्ट रूप से योग साधना में रत एक व्यक्ति का है, जिसे योगाभ्यास के रूप में स्वयं पर नियंत्रण करते हुए दर्शाया गया है। 4. स्वयं में लीन सील क्रमांक 2410, 100401 य व्रात्य / धर्म स्वसंग जो व्रात्य या धर्म पुरुष स्वयं के साथ अर्थात् अकेला है। इसे सम्भवतः ऐसे भी कहा जा सकता है जिसने सब बंधनों को त्याग दिया है और नितांत अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104