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8-10 वर्षों तक चली गोपाचल क्षेत्र पर विकीर्ण पुरासम्पदा के अभिलेखीकरण एवं मूल्यांकन की गोपाचल परियोजना की सफल परिणति The Jaina Sanctuaries of Gawalior शीर्षक बहुरंगी प्रकाशन के रूप में हुई। इसी श्रृंखला में हमारी नवीन प्रस्तुति 'म.प्र. का जैन शिल्प' शीघ्र ही आपको प्राप्त होगी। शोध त्रैमासिकी अर्हत् वचन के तो आप पाठक हैं ही। जैन समाज में विशेषत: शोध विद्वानों के मध्य इसने जो ख्याति अर्जित की है वह आपसे छिपी नहीं है। हम इसमें निरन्तर परिष्कार करते हुए उत्कृष्टता के नये शिखरों तक पहुँचने का आपको विश्वास दिलाते हैं। नैतिक शिक्षा भाग-1 से 7, बालबोध जैन धर्म भाग 1 से 4 के अतिरिक्त जैन धर्म का सरल परिचय द्वारा पं. बलभद्र जैन, जैन धर्म विश्व धर्म द्वारा पं. नाथूराम डोंगरीय एवं इसके अंग्रेजी अनुवाद जन सामान्य को जैन धर्म का प्राथमिक ज्ञान देने वाली बहुश्रुत पुस्तकें हैं। जन - जन ने इनको खूब सराहा है। कतिपय अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन भी आपको नई शताब्दी के प्रथम वर्ष में मिलेंगे। लगभग 20 छात्र/छात्राएँ इस शोध संस्थान से अकादमिक/आर्थिक सहयोग प्राप्त कर अपने Ph.D./M.Phil/M.Ed./M.A. शोधप्रबन्ध/लघु शोधप्रबन्ध लिख चुके हैं एवं अनेकों लिख रहे हैं। श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर के आर्थिक सहयोग से हम जैन साहित्य सूचीकरण परियोजना संचालित कर रहे है। यह परियोजना अगली शताब्दी की समस्त साहित्यिक परियोजनाओं की रीढ़ होगी ; क्योंकि सूचनाओं का आधार यह परियोजना ही बनेगी। इतने मजबूत आधार के साथ हम ज्ञानपीठ में नई सहस्राब्दि का स्वागत करेंगे।
इस आधार को प्राप्त करने में हमें अनेकों समर्पित कार्यकर्ताओं का समर्पण मिला है। किन्तु विशेष रूप से मैं उल्लेख करना चाहूँगा प्रो. नवीन सी. जैन इन्दौर का, जिन्होंने अत्यन्त निस्पृह एवं समर्पित भाव से 1995 से 2000 तक मानद् निदेशक के रूप में इस संस्थान को अपनी सेवायें प्रदान की। उनके नेतृत्व में ही यह ज्ञानपीठ देवी अहिल्या वि.वि. से मान्य शोध केन्द्र की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सका। शारीरिक प्रतिकूलताओं के कारण अब वे हमें नियमित मार्गदर्शन नहीं दे पा रहे हैं; किन्तु हमें विश्वास है कि देश - विदेश में उनके सुदीर्घ अनुभव का लाभ हमें सतत मिलता रहेगा। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ कार्य परिषद, निदेशक मंडल, अर्हत् वचन सम्पादक मंडल एवं ज्ञानपीठ कार्यालय के सभी समर्पित अधिकारियों/कर्मचारियों को भी मैं उनके समर्पण हेतु साधुवाद देता हूँ। उनका यह समर्पण भाव निरन्तर वृद्धिंगत होता रहे, यही कामना है। दि. जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट के सभी माननीय ट्रस्टियों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने अपना पूर्ण सहयोग, समर्थन मुझे प्रदान किया जिससे मैं अपनी कल्पना को मूर्तरूप दे सका। कुंदकुंद ज्ञानपीठ के सचिव डॉ. अनुपम जैन तो प्रारंभ से ही मेरी कल्पनाओं को आकार देने में सहभागी रहे हैं। ज्ञानपीठ तो उनके जीवन का लक्ष्य ही बन गया है। वे अहिर्निश ज्ञानपीठ की प्रगति के बारे में ही चिंतन करते हैं। मैं उनको शुभाशीष देता हूँ कि वे इसी समर्पण भाव एवं पूर्ण मनोयोग से कार्य करते रहें।
अर्हत वचन के 13 वें वर्ष में प्रवेश के साथ इसमें अनेक परिवर्तन प्रस्तावित हैं। जिनकी जानकारी समय - समय पर दी जावेगी। अर्हत् वचन जैन विद्याओं के अध्ययन/अनुसंधान का दर्पण बने, यही कामना है। आपके सुझावों का सदैव स्वागत है।
देवकुमारसिंह कासलीवाल
अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000