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भूमिका
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मिट्टो के ( पृ० ६५ ) पात्रों में अलिंजर ( बहुत बड़ा लंबोतरा घड़ा ), अलिन्द, कुंडग ( कुण्डा नामक बड़ा घड़ा), माणक ( ज्येष्ठ माट नाम का घड़ा ) और छोटे पात्रों में वारक, कलश, मल्लक, पिठरक आदि का उल्लेख है।
इसी प्रकरण में धन का विवरण देते हुए कुछ सिक्कों के नाम आये हैं, जैसे स्वर्णमासक, रजतमासक, दोनारमासक, णाणमासक, काहापण, क्षेत्रपक, पुराण और सतेरक । इनमें से दीनार कुषाण कालीन प्रसिद्ध सोने का सिका था जो गुप्तकाल में भी चालू था। संभवतः कुषाण सम्राटों का चलाया हुआ मोटा गोल बड़ी आकृति का तांबे का पैसा था जिसके लाखों नमूने आज भी पाये गये हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि ननादेवी की आकृति सिक्कों पर कुषाणकाल में बनाई जाने लगी थी और इसीलिए चालू सिक्कों को नाणक कहा जाता था । पुराण शब्द महत्त्वपूर्ण है जो कुषाणकाल में चाँदी की पुरानी आहत मुद्राओं (अंग्रेजी पंचमार्कड ) के लिए प्रयुक्त होने लगा था, क्योंकि नये ढाले गये सिकों की अपेक्षा वे उस समय पुराने समझे जाने लगे थे यद्यपि उनका पुण्यशाला लेख में ११०० पुराण सिकों के दान का उल्लेख आया है । समय लोक में प्रचलित थी जो उज्जैनी के शकवंशी महाक्षत्रपों शती से चौथी शती तक जिनको बहुत लम्बी श्रृंखला पायी गई है। सतेरक यूनानी स्टेटर सिक्के का भारतीय नाम है। सतेरक का
चलन वे रोक-टोक जारी था। हुविष्क के खतपक संज्ञा चाँदी के उन सिक्कों के लिए उस द्वारा चालू किये गये थे और लगभग पहली इन्हें ही आरम्भ में रुद्रदामक भी कहा जाता था । उल्लेख मध्यएशिया के लेखों में तथा वसुबन्धु के अभिधर्म कोश में भी आया है ।
पृष्ठ ७२ पर सुवर्ण-काकिणी, मासक काकिणी, सुवर्णगुञ्जा और दीनार का उल्लेख हुआ है । पृ० १८९ पर सुवर्ण और कार्यापण के नाम हैं। पृ० २१५ – २१६ पर कार्षापण और जाण, मासक, अद्धमासक, काकली और अनुभाग का उल्लेख है। साथ सुवर्ण-मापक और सुवर्ण-काकिणी का नाम विशेष रूप से लिया गया है (०२१६ |
सुवर्ण के
दूसरे द्वार में पृ० ६६७२ पिचहत्तर श्री नामों की सूचियाँ हैं जिनमें मनुष्य, देवयोनि, चतुष्पद, पक्षी, जलचर, थलचर, वृक्ष, पुष्प, फल, भोजन, वस्त्र, आभूषण, शयनासन, यान, भाजन, भाण्डोपकरण और आयुधों के नाम हैं । स्त्रीजातीय मनुष्य नामों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं-अमची, वल्लभी, प्रतिहारी, भोगिनी, तलवरी, रहिनी (राष्ट्रिक नामक उच्च अधिकारी की पत्नी), सार्थवाही ( सार्थवाहक नामक व्यापारी को पत्नी ), इभी ( इभ्य नामक श्रेष्ठी की पत्नी ); देश के अनुसार लाटी, किराती, बब्बरी ( बर्बर देश की ), जोणिका ( यवन देश की ), शबरी, पुलिन्दी, आन्ध्री, दिमिलि ( द्रमिल या द्राविड़ देश की स्त्री ) ( पृ० ६८ ) ।
देवयोनि ( पृ० ६९ ) के अन्तर्गत कुछ देवियों के नाम महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे इन्द्रमहिषी, असुरमहिषी, अरिका भगवती किन्तु इस सूची में कुछ विदेश की देवियों के नाम भी आ गये हैं, उनमें अपला, अगादिता, अइराणी, साहि-मालिणी उल्लेखनीय हैं। अपढ़ा यूनानी देवी पलास अथीनी और अणादिता ईरान की अनाहिता ज्ञात होती हैं। सालि मालिनी की पहचान चन्द्रमा की यूनानी देवी सेलिनी से संभवतः की जा सकती है। तिधिणी या तिधरणी संज्ञा स्पष्ट नहीं है। हो सकता है यह रोम की देवी डायना का भारतीय रूप हो । अइराणी नाम पृ० २०५ और २२३ पर भी आया है। इसकी पहचान निश्चित नहीं । किन्तु प्राचीन देवियों की सूची में
अमोदिती का नाम इसके निकटतम है। यदि अइराणित्ति का पाठ अहरादित्ती रहा हो तो यह पहचान ठीक हो सकती है। रंभत्ति मिस्सकेसित्ति का पाठ भी कुछ बदला हुआ जान पड़ता है क्योंकि मिश्रकेशी का नाम पहले आ चुका है। मोतीचन्द्र जी को प्राप्त एक प्रति में रम्मं तिमिस्सफेसिति पाठ मिला था। इनमें तिमिस्सकेसी
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