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भूमिका
५९ वें अध्याय का नाम काल अध्याय है जिसमें २७ पटल हैं। पहले पटल में काल विभाग के नाम हैं। दूसरे में गुणों का विवेचन है। तीसरे पटल में उत्पात और चौथे में काल के सूक्ष्म विभागों का उल्लेख है। पांचवें पटल से २७ वें पटल तक जीव-अजीव पदार्थों और प्राणियों का काल के साथ सम्बन्ध कहा गया है। बारहवाँ पटल महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें छह ऋतु और बारह महीनों के क्रम से प्रकृति में होनेवाले वृक्ष वनस्पति, पुष्प, सस्य, ऋतु आदि के परिवर्तन गिनाये गये हैं। उदाहरण के लिये फाल्गुन महीने के सम्बन्ध में कहा हैफाल्गुन मास में नर नारिओं के मिथुन मिलकर उत्सव मनाते हैं और मुदित होते हैं। उस समय शीत हट जाता है
और कुछ उष्ण भाव आ जाता है। जिस समय आम्रमंजरी निकलती और कोयल शब्द करती है उस समय गाने बजाने और हँसी खुशी के साथ स्त्री पुरुष आपानक प्रमोद में मस्त होते हैं। जपा, इन्दीवर, श्यामाक के पुष्पों से आंदोलित ऋतु का नाम वसंत है, जिसमें मनुष्य मस्त होकर नाचने लगते हैं, घूमने लगते हैं। स्त्री पुरुषों के मिथुन मैथुन कथा प्रसंगों में लगे हुए नाना भांति से अपना मंडन करते हैं उसका नाम फाल्गुन मास है। इन ४२ श्लोकों को अपने साहित्य का सबसे प्राचीन बारामासा कहा जा सकता है (पृ० २४३-४४ )।
सत्रहवें पटल में प्रातःकाल से लेकर संध्या काल तक के भिन्न-भिन्न व्यवहार बताये गये हैं। जिसमें प्रातराश, मध्याह्न भोजन, उद्यान भोजन आदि हैं। बीसवें पटल में रामायण, भारत और पुराणों की कथाओं का भी उल्लेख है।
___साठवें अध्याय में पूर्वभव अर्थात् देवभव, मनुष्यभव, तिर्यक्भव और नैरयिकभव के जानने की युक्ति बताई गई है। इसी के उत्तरार्ध में आगामी भव जानने की युक्ति का विचार है।
___ इस प्रकार यह अंगविज्जा नामक प्राचीन शास्त्र सांस्कृतिक दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण सामग्री से परिपूर्ण है। निःसन्देह इसकी शब्दावली अनेक स्थलों में अस्पष्ट और गूढ़ है। इस ग्रन्थ की कोई भी प्राचीन या नवीन टीका उपलब्ध नहीं। प्राकृत कोष भी इन शब्दों के विषय में सहायता नहीं करते। वस्तुतः तो स्वयं अंगविज्जा के आधार पर वर्तमान प्राकृत कोषों में अनेक नये शब्दों को जोड़ने की आवश्यकता है। इस ग्रंथ पर विशेष रूप से स्वतंत्र अर्थ अनुसंधान की आवश्यकता है। तुलनात्मक सामग्री के आधार पर एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह संभव हो सकेगा कि इसको शब्दावली एवं वस्त्र, भाजन, आभूषण, शयनासन, गृहवस्तु, फल, मूल, पुष्प, वृक्ष यान, वाहन, पशुपक्षी, धातु, रत्न, देवी-देवता, पर्व, उत्सव, व्यवहार आदि से संबंधित जो मूल्यवान् शब्दसूचियाँ इस ग्रन्थ में सुरक्षित रह गई हैं, उनकी यथार्थ व्याख्या की जा सके। आशा है कि इस ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद सांस्कृतिक इतिहास के विद्वान लेखक इस सामग्री का समुचित उपयोग कर सकेंगे। यहाँ हमने कुछ शब्दों पर विचार किया है, बहुत से अभी अस्पष्ट रह गये हैं। फिर भी जहाँ तक संभव हो सका है, सांस्कृतिक अर्थों को दृष्टि से अंगविद्या के अध्ययन को आगे बढ़ाने का कुछ प्रयत्न यहाँ किया गया है।
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