Book Title: Angavijja
Author(s): Punyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Granth Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ द्वितीय परिशिष्टम् २८३ १५१ गोत्र १५० १४८ अमिला शब्द शब्द पत्र शब्द पत्र अपमाणसंपण्ण १७३ अप्पसण्णतरा ११२ अभिणंदित क्रिया. १६८-१० अपयात क्रिया. १९९ अप्पसण्णा अभिधम्मीय अभिधार्मिक. १४३ अपरायित अपराजित ७६ अप्पसत्थऽज्झाय अभिप्पायक अपरिमित अप्पसत्थभा अभिमट्ठ २५-१३० अपरिमिताणुगमण अप्पसत्थमज्झायं अभिमजित अभिमार्जित २१ अपरिमेज अपरिमेय २४०-२४१ अप्पाणे आत्मनि ७ अभिमज्जितामास २०१ अपलिखित क्रिया. १७१ अप्पिया ५८-१२९ अभिमिलंते अभिमीलति ३४ अपलोकणिका शीर्ष भाभू. १६२ अप्पुट्टितविभासा अभिवहण उत्सव ? १४१ अपलोलित क्रिया. १६९.१७-१८३ अप्पुट्टिताणेक्कवीसं ११-४५ अभिवंदहे अभिवन्दे ५-६ अपवट्टित अपवर्तित १७१ अप्पोवचया ५८-११४ अभिसंगत क्रिया. १६८ अपवत्त अपवृत्त १७१ अप्फिडित आस्फिटित १६९ अभिसंधुत अभिसंस्तुत १७० अपवाम ७६ अप्फोडित मास्फोटित १६८-१७०-१७६ अभिहट्ट अभिहृष्ट ३९-१३० अपविट्ठ १७१ अप्फोतिका वनस्पति ७० अभुदइक अभ्युदयिक १२१ अपविद्ध अष्फोय वृक्ष ६३ अभोगाकरिणी? कर्माजीविन् ६८ अपव्वाम २२ अबुद्धीरमणा ५८-१२२ १२४ अमणुण्ण अमनोज्ञ ३७ अपसर्कत अपवष्कत् ११३ अब्भराया देवता ६९ अमिल भाण्ड अपसण्णभपसण्णा अब्भवालुका मृत्तिका २३३ अविला २३८ अपसण्णामास २०२ . अब्भतरअब्भतरक अम्हरि रोग २०३ अपसव्व अपसव्य ७६ अभंतरजोणि १३९ अयकण्ण वृक्ष ६३ अपसारित क्रिया. १६९-१७१ अभंतरठितामास २४ अयकण्ण फल २३२ अपस्सयहि अपश्रये ३१ अभंतरपरियरण १३६ अयमार वृक्ष ६३ अपस्सयविहि अपश्रयविधि ९-१०.५९ अभंतरबज्झा ८८ अयसा सुरा १८१ अपस्सया सत्तरस अभंतरबाहिराणि ५७-१२८ अयसीतेल्ल अपस्सिम भपश्रित पार्श्विक ४२ अब्भंतरंतराणि १२८ अयेलका अजैडको १६६ अपहट्ट अपहृष्ट २१५ अब्भंतराणतरिया ८७ अयो अतः ४६ अपहरितक अभंतराणि ५७-८७-९०-१२८ अपहृतक १६६ भयोगक्खेम भयोगक्षेम १६२ अपहित अपहृत अभंतरापम? १६९ २५ अरक कृमिजाति अपंगुत अभंतरामास अप्रावृत १९९ १३०-१३३ अरकूडक धातु २४० अभंतरावचर कर्माजीविन् १५९ अपातयं अपातपम् भरलूसा - वृक्षजाति अब्भाकारिक? कर्माजीविन् ६७-७९ अरस्स २२२ भपातव अपातप अब्भागारिक ? कर्माजीविन् ८४-१५९ अपावुर्णत अप्रावृण्वत् अरंजर जलघट ३०-३१-६५-१९५ अब्भातलपलाइत अभ्रतलपलायित १४४ अपिधावधिकधा? अरंजरमूल अपीलये? अभितरगिह अभ्यन्तरगृह १३७ अरंजरवल्ली अभितरामिमट्ठ भपीडित अपीलित देवता २०४ अपी(वि)वरा १२४ अब्भुक्तढित अभ्युत्कृष्ट-अभ्युत्कथित १०६ अरिट्ठा सुरा ६४-१८१-२२१ अप्पणामंतो अन्भु(पु)ट्ठियविधि अपनामयम् ३७ अलकपरिक्खेव अलकपरिक्षेप ६४ अप्पणि वात्मनि अन्भुत्तिटुति अभ्युत्तिष्ठति १४१ अलणा देवता २२३ अप्पणी अभ्युत्प्लवते १४१ अलत्तक अब्भुप्पवति आत्मनि १०-११-१२-१३ अलक्तक १६२ अप्पणीयक भास्मीयक ११-१३६-२१४ अभत्तीण अभक्त्या अलवण लवणवर्जित भोज्य १८२ अप्पणोक आत्मीय? १८ अभिकखित अभिकाशित १९० अलसंदक धान्य २२० अप्पणिया? २० अभिजिय? क्रिया. १९२ अलंकित मलङ्कृत १६८ अप्पपरिग्गह ५८-१२२-१२९ अमिणवभोयणं १८० भलंदक भाण्ड ६५ अप्पमजित अप्रमार्जित , २१ अभिणच्च अभिनव १४५ अलदिका भाण्ड ७२ २३२ २५ मरिट्र . Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487