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भूमिका ८३ भोग, चेष्टा, आचार-विचार, चूड़ाकर्म (चोल), उपनयन, तिथि ( पर्व विशेष ), उत्सव, समाज, यज्ञ आदि विशेष आयोजनों का उल्लेख है। संसार चार प्रकार के होते हैं - दिव्य, मानुष्य, तिर्यंच, नारकी । देवताओं की सूची में निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय हैं- वैश्रवण, विष्णु, रुद्र, शिव कुमार, स्कन्द, विशाख ( इन तीन नामों का पृथक् उल्लेख कुषाण काल की मुद्राओं पर भी पाया जाता है), ब्रह्मा, बलदेव, वासुदेव, प्रद्युम्न, पर्वत, नाग, सुपर्ण, नदी, अणा ( एक मातृदेवी ), अज्जा, अइराणी ( पृ० ६९, २०४ पर भी यह नाम आ चुका है ), माउया (मातृका, सउणी, ( शकुनी, सम्भवतः सुपर्णी देवी), एकाणंसा ( एकानंसा नामक देवी जो कृष्ण और बलराम की बहिन मानी जाती है सिरी (श्री — लक्ष्मी ), बुद्धि, मेधा, कित्ती : कीति), सरस्वती, नाग, नागी, राक्षस-राक्षसी, असुरअसुरकन्या, गन्धर्व-गन्धर्वी, किंपुरुष-किंपुरुषकन्या, जक्ख-जक्खी, अप्सरा, गिरिकुमारी, समुद्र - समुद्रकुमारी, द्वीपकुमारद्वीपकुमारी, चन्द्र, आदित्य, ग्रह, नक्षत्र, तारागण, वातकन्या, यम, वरुण, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, दिशाकुमारी, पुरदेवता, वास्तुदेवता, वर्चदेवता ( दुर्गन्धि स्थान के अधिष्ठातृ देवता ), सुसारण देवता ( श्मशान देवता ), पितृदेवता, चारण, विद्याधरी, विज्जादेवता, महर्षि आदि । इस सूची में कई बातें ध्यान देने योग्य हैं । एक तो देवताओं की यह सूची जैनधर्म की मान्यताओं की सीमा में संकुचित न रहकर लोक से संगृहीत की गई थी । अतएव इसमें उन अनेक देव-देवियों के नाम आ गये हैं जिनकी पूजा-परम्परा लोक में प्रचलित थी। इसमें एक ओर तो प्रायः वे सब नाम आ गये हैं जिनकी मान्यता मह नामक उत्सवों के रूप में पूर्वकाल से चली आती थी; जैसे - वेस्समण मह रुद्दमह, सिवमह, नदीमह, बलदेवमह, वासुदेवमह, नागमह, जक्खमह, पव्वतमह, समुद्रमह, चन्द्रमह, आदित्यमह, इन्द्रमह आदि; दूसरे कुछ वैदिक देवता, जैसे- वरुण, सोम, यम; कुछ विशेष रूप से जैन देवता जैसे द्वीपकुमारी, दिशाकुमारी ; अग्निदेवता के साथ अग्निघर और नागदेवता के साथ नागघर का उल्लेख विशेष ध्यान देने योग्य है। नागघर या नागभवन या नागस्थान, नागदेवता के मन्दिर थे जिनको मान्यता कुषाण काल में विशेष रूप से प्रचलित थी । मथुरा के शिलालेखों में नागदेवता और उनके स्थानों का विशेष वर्णन आता है। एक प्रसिद्ध नागभवन राजगृह में मणियार नाग का स्थान था जिसको खुदाई में मूर्त्ति और लेख प्राप्त हुए हैं। स्कन्द, विशाख, कुमार और महासेन ये चार भाई कहलाते थे जो आगे चलकर एक में मिल गये और पर्यायवाची रूप में आने लगे, पर हुविष्क के सिक्कों पर एवं काश्यप संहिता में इनका अलग-अलग उल्लेख है, जैसा कि उनमें से तीन का यहाँ भी उल्लेख है। श्री लक्ष्मी की पूजा तो शुंगकाल से बराबर चली आती थी और उसकी अनेक मूर्तियाँ भी पाई गई हैं । किन्तु मेधा और बुद्धि का देवता रूप में उल्लेख यहाँ नया है ।
मनुष्य योनि के सम्बन्ध में पहले स्त्री, पुरुष और नपुंसक - इन तीन भेदों का विचार किया गया है
और फिर पिता, माता आदि सम्बन्धियों की सूची दी है । तदन्तर पक्षी, चतुष्पद, परिसर्प, जलचर, कीट, पतंग, पुष्प, फल, लता, धान्य, तैल, वस्त्र, धातु, वर्ण, आभरण आदि की विस्तृत सूचियां दी गई हैं जिनसे तत्कालीन संस्कृति के विषय में उपयोगी सूचना प्राप्त होती है। जलचर जीवों में कुछ ऐसे नाम हैं जिनका अंकन मथुरा की जैन कला में विशेष रूप से पाया जाता है। इन्हें सामुद्रिक अभिप्राय (Marine Motifs) कहा जाता है; जैसे हत्थिमच्छा ( हाथी का शरीर और मछली की पूछ मिली हुई, जिसे जलेभ या जलहस्ति भी कहा जाता है ), मगमच्छ ( मृगमत्स्य ), गोमच्छ ( गौमत्स्य ), अस्समच्छ ( आधी अश्व की आधी मत्स्य की ), नरमत्स्य ( पूर्वकाय मनुष्य का और अधःकाय मत्स्य का, अं० Triton ) । मछलियों की सूची में कुछ नाम विशेष ध्यान देने योग्य हैं। जैसे सकुचिका ( सकची माछ ), चम्मिरा (चर्मज, मानसोल्लास ), घोहरणु, वइरमच्छ ( वज्रमच्छ), तिमितिमिगिल, वाली, सुंसुमार कच्छभमगर, गद्दभकप्पमारण ( Shark ), रोहित, पिचक ( पिच्छक, मानसोल्लास ), गलमीन ( नलमीन, eel (, चम्मराज, कल्लाङक, सीकुंडी, उप्पातिक, इंचका, कुडुकालक, सित्तमच्छक ( पृ० २२८ ) ।
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