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अंगविजापइण्णयं तकोदण ( तक्रौदन), अतिकूरक (विशेष प्रकार का भात, पुलाव ) इत्यादि। मूलयोनिगत आहार की सूची में शालि, व्रीहि, कोद्रव, कंगू , रालक (एक प्रकार की कंगनी), वरक, जौ, गेहूँ, मास, मूंग, अलसंदक (धान्य विशेष ), चना, णिप्फावा (गुज० वाल, सेम का बीज ), कुलत्था (कुलथी), चणविका (=चणकिका चने से मिलता हुआ अन्न, प्राकृत चणइया, ठाणांग सूत्र ५,३), मसूर, तिल, अलसी, कुसुम्भ, सावां । '
इस प्रकरण में कुछ प्राचीन मद्यों के नाम भी गिनाये हैं। जैसे पसण्णा (सं० प्रसन्ना नामक चावल से बना मद्य, काशिका ५.४.१४, संभवतः श्वेत सुरा या अवदातिका), णिहिता ( =निष्ठिता, मद्यविशेष मंहगी शराब, संभवतः द्राक्षा से बनी हुई), मधुकर ( महुवे की शराब ) आसव, जंगल ( ईख की मदिरा ), मधुरमेरक (मधुरसेरक पाठान्तर अशुद्ध है। वस्तुतः यह वही है जिसे संस्कृत में मधुमैरेय कहा गया है, काशिका ६.२.७० ), अरिद्व, अट्ठकालिक ( इसका शुद्ध पाठ अरिद्वकालिका था जैसा कुछ प्रतियों में है, कालिका एक प्रकार की सुरा होती है, काशिका ५.४.३, अर्थशास्त्र २२५ , आसवासव ( पुराना आसव), सुरा, कुसुकुंडी ( एक प्रकार की श्वेत मधुर सुरा), जयकालिका।
धातु के बने आभरणों में सुवर्ण, रुप्प, तांबा, हारकूट, पु (रांगा) सीसा, काललोह, वट्टलोह, सेल, मत्तिका का उल्लेख है। धातुनिर्मित वस्त्रों में सुवर्णपट्ट (किमखाब ) सुवर्णखचित (जरी का काम ) और लौहजालिका (पृ० २२१)-ये हैं। इसी प्रसंग में तीन सूचियाँ रोचक हैं-घर, नगर, और नगर के बाहर के भाग के विभिन्न स्थानों की। घर के भीतर अरंजर, अष्ट्रिका, पल्ल (सं० पल्य, धान्य भरने का बड़ा कोठा ), कुड्य, किज्जर, ओखली, घट, खड्डभाजन (खोदकर गड़ा हुआ पात्र ), पेलिता ( पेलिका संभवतः पेटिका , माल (घर का ऊपरी तल), वातपाणं ( गवाक्ष ), चर्मकोष ( चमड़े का थैला ), बिल, नाली, थंभ, अंतरिया ( अंत के कोने में बनी हुई कोठी या भंडरिया ), पस्संतरिया (पार्श्वभाग में बनी हुई भंडरिया), कोट्ठागार, भत्तघर, वासघर, अरस्स (आदर्श भवन या सीसमल), पडिकम्मघर (शृंगारगृह ) असोयवणिया (अशोकवनिका नामक गृहोद्यान), आवुपध, पणाली, उदकचार, वच्चाडक ( वर्चस्थान ), अरिट्ठगहण ( कोपगृह जैसा स्थान ), चित्तगिह (चित्रगृह ), सिरिगिह ( श्री गृह ), अग्निहोत्रगृह, स्नानगृह, पुस्सघर, दासीघर, वेसण ।
नगर के विभिन्न भागों की सूची इस प्रकार है-अन्तःपुर या राजप्रासाद, भूमंतर (भूम्यंतर संभवतः भूमिगृह ), सिंघाडक (शृङ्गाटक ), चउक्क (चौक ), राजपथ, महारथ्या, उस्साहिया ( अज्ञात, संभवतः परकोटे के पीछे की ऊँचो सड़क ), प्रासाद, गोपुर, अट्टालक, पकंठा (प्रकंठी नामक बुर्ज), तोरण, द्वार, पर्वत, वासुरुल ( अज्ञात ), थूभ ( स्तूप), एलुय (एडुक), प्रणाली, प्रवात (प्रपात, गड्ढा ), वप्प, तडाग, दहफलिहा (ह्रदपरिखा), वय (ब्रजगोकुल अथवा मार्ग या रास्ता)।
____ नगरबाह्य स्थानों की सूची इस प्रकार है-ध्वज, तोरण, देवागार, वुक्ख (वृक्ष), पर्वत, माल, थंभ, एलुग (द्वार की लकड़ी), पाली ( तलाव का बांध ), तडाग, चउक, वप्र, आराम, श्मशान, वच्चभूगि मंडलभूमि, प्रपा, नदी-तडाग, देवायतन, दड्डवण ( दग्धवन ), उट्ठियपट्टग (ऊँचा स्थान ), जण्णवाड ( यज्ञपाटक), संगाम भूमि ( संग्राम भूमि)। ..
५पा चिन्तित अध्याय है। जैनधर्म में जीव-अजीव के विचार का विषय बहुत विस्तार से आता है। यहाँ धार्मिक दृष्टिकोण से उस सम्बन्ध में विचार न करके केवल कुछ 'सूचिओं की ओर ध्यान दिलाना इष्ट है। जीव, अजीव-इसमें जीव दो प्रकार का है-एक संसारी और दूसरा सिद्ध। संसारी जीव के सम्बन्ध में याचन विवृद्धि,
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