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अंगविज्जापइरणयं
२१ इक्कीसवाँ विजयद्वाराध्याय
२२ बाईसवाँ प्रशस्ताध्याय
इस अध्यायमें अनेक जातीय प्रशस्त नाम, क्रियाएँ, पूजा, उत्सव, स्थान, ऋतु आदिका उल्लेख और तदनुसार फलादेशका कथन है।
२३ तेईसवाँ अप्रशस्त अध्याय
इस अध्याय में अनेक प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है
२४ चौबीसवाँ जातिविजयाध्याय
इस अध्यायमें अङ्गविद्या के अनुसार जातिविषयक फलादेश कथन है
२५ पच्चोसवाँ गोत्राध्याय
अंगविद्या अनुसार गोत्रविषयक फलादेश इस अध्यायमें प्राचीन गोत्रोंका विपुल उल्लेख है
२६ छब्बीसवाँ नामाध्याय
इस अध्यायमें व्याकरणविभाग, नामविषयक विचार और अंगविधा अनुसार फलादेश है
२७ सत्ताईसवाँ स्थान अध्याय
अंगविधा अनुसार अधिकारविषयक फलादेश इस अध्यायमें अनेक प्रकारके अधिकारियों का निर्देश है
२८ अट्ठाईसवाँ कर्मयोनि अध्याय अंगविद्या अनुसार कर्म एवं शिल्पविषयक फलादेश इस अध्यायमें अनेक प्रकार के प्राचीन कर्म, शिल्प एवं व्यापारों का उल्लेख है
२९ उनतीसवाँ नगरविजयाध्याय
३० तीसवाँ आभरणयोनि अध्याय
इस अध्यायमें प्राचीन विविध आभरण एवं अंगरचना के नामों का उल्लेख है
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