________________
का अतीत स्मृति
MLA
WATEST
TIMI2.
प्रात्मा का बोध
(ले०-श्री यशपाल बी० ए०, एल० एल० बी. कण्डलपुरके यशस्वी राजा सिद्धार्थको मृत्युके कभी नहीं देखा।
कई वर्ष बादकी बात है। युवराज वर्द्धमान दूसरा कहता- हाय, साँप है कि अाफ़त है। गृहस्थ-आश्रम पारकर राज-पाटको छोड़ वनमें जिसकी ओर वह एकबार दृष्टि डालदेता है वह चलेगये थे और कुण्डलपुरके सिंहासनपर उनका वहीं भस्म होजाता है। क्या मज़ाल कि एक साँस ज्येष्ठ भ्राता नंदिवर्द्धन आसीन होगया था। युवराज भी तो लेले । के नगर छोड़देनेपर अभी चारोंओर अशान्ति फैली हुई थी।
तीसरा कहता-सच कहता हूं, मेरी आँखों
देखी बात है । वहाँ (उंगली से संकेत करके) वह उन्हीं दिनों कनखल तापसाश्रममें बड़ा आतंक
तपस्वी बैठता था न ? बिचारा छिनभरमें भस्म छागया । वर्षोंसे निवास करनेवाले तपस्वी आश्रम
होगया । उस भुजङ्गीके आगे किसीकी नहीं छोङ-छोड़कर अन्यत्र बसने जाने लगे। भला कौन उस आश्रमके समीप रहनेवाले विषधरकी
__ और पगडण्डीके सहारे विलाप करती हुई स्त्री मात्र एक दृष्टि से भस्म होजाना चाहता ? तपस्वी
मृत-प्राय होचली थी । उसका चार-पाँच बरसका सामान उठाकर चलते जाते थे और चर्चा करते
अबोध बालक उसकी छातीपर चढ़ा उसके रूखे जाते थे।
स्तनका पान कर रहा था और ध न पीकर कोई कहता-भैया, जंगलोंमें रहते-रहते ही अनायासही चीख मारकर रो उठता था। स्त्री मेरी उमर बीती है; लेकिन ऐसा अजगर मैंने बेसुध-सी पड़ी थी। रो रही है, बिलख रही है,