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क्रिया करने में थावकों को तथा आहार, निहार और विहार आदि के हेतु साधुओं की सावद्य-क्रिया जन्य पाप अपरिहार्य माना गया है क्योंकि पारिणामिक शुद्धि की हेतु होने से वैसी क्रियाओं की जिनाज्ञा है ; वैसे ही जिनालयों में प्रभु दर्शन-पूजन आदि में सावद्य-क्रिया जन्य पाप अपरिहार्य है, क्योंकि पारिणामिक शुद्धि के लिए इन क्रियाओं की भी जिनागमों में जिनाज्ञा है । अतः हे भव्यो ! जिनाज्ञा को ठुकरा कर उपरोक्त शुभ-करनी से मुंह मत मोड़ो, प्रत्युत शरीर, संसार और भोग रूप अशुभ-करनी से बचने के लिए जब तक स्वरूप-स्थिरता न हो जाय तब तक नित्य नियमित रूप से शुभ-करनी करो।
जिज्ञासु-हमारे प्रश्न के समाधान-रूप में आपने जो भी फर. माया, वह अक्षरशः बुद्धि में उतरकर आत्मा में स्पर्श करता है अतः यथार्थ है। हमें इस विषय में ऐसा अनुभवपूर्ण हृदयंगम समाधान कहीं से भी नहीं मिला था अतः अब तक भ्रम में ही थे, जिस भ्रम को आज आपश्री के टंकशाली प्रवचन ने जड़ से ही मिटा दिया। हे कारूण्यमूर्ते! आपके इस उपकार को हम कभी भी नहीं भुला सकेंगे। हे सद्गुरो ! आज से हम सभी को आपका ही शरण हो। अब कृपा करके शुभ-करणीमूलक प्रभु-पूजन के विधि-विधान पर थोड़ा सा प्रकाश डालिये, क्योंकि उससे हम अनभिज्ञ हैं।
१. सन्त आनन्दघनजी-हे सुबुद्धि ! प्रातः काल द्रव्य निद्रा से जगते ही भाव निद्रा से मुक्त होने के लिए इस नीचे बताई जाने वाली सम्यक्-विधि से आत्म-वैभव द्वारा अपनी शोभा बढ़ाने वाली शोभन क्रिया करनी चाहिए।
प्रथम अपने हृदय कमल को सुलटा कर उस पर रागादि शत्रुओं को जीतनेवाले सम्पूर्ण आत्मैश्वर्य युक्त सम्यक विधि प्रदर्शक श्री सुविधि जिमेश्वर भगवान की चैतन्यमूर्ति को स्थापन करके शरीर में सातों ही धातुओं के भेदन पूर्वक अत्यधिक उल्लासभाव को धारण करते हुए
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