Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 222
________________ १ ऋषभ जिन चैत्यवंदन ॐ श्री सहजानंदघन कृत चैत्य-वंदन चौवीसी सं० २००४ चैत्री विक्रम मोकलसर गुफा सिद्ध ऋद्ध प्रगटाववा, प्रणमुं आदि - जिर्णद ; अशुद्ध योगो-त्रय तजी, प्रशस्त- राग अमंद .१ सर्व ; केवल अध्यातम थकी, तप जप किरिया भवोपाधि भ्रम नवि टले, वधे शुष्कता गर्व... २ कारण-कर्त्तारोप थी, पराभक्ति प्रगटाय, सहजानंदघन दोष टले दृष्टि खुले, थाय ३ २ अजित जिन चैत्यवंदन अजित शत्रु- गण जीतवा, अजितनाथ प्रतीत ; विलोकुं तुझ पथ प्रभो !, यूथ - भृष्ट मृग रीत १ - Jain Educationa International अंध परंपर चर्म-दृग्, आगम - तर्क-विचार ; तजी भाव-योगी भजत, प्रगट बोध निरधार....२ तीर्थङ्करने संत मां, ध्येये भेद न कोय ; सत्पुरुषार्थे सेवतां, सहजानंदघन For Personal and Private Use Only होय...३ [ १५९ www.jainelibrary.org

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