Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 229
________________ २१ नमिनाथ जिन चैत्यवंदन कुल धर्मं नास्तिक थई, सत् समझ अनेकान्त ; चिद्-जड़-सत्ता नियत छे, सांख्य-योग सिद्धांत...१ अथिर-पर्यय द्रव्य-थिर, नियत सुगत-वेदान्त ; लोक-प्रपंच तजी भजो, अलोक आत्म अभ्रान्त""२ नमि जिनवर उत्तमांग मां, षट् दर्शन पद-द्रव्य ; गुरुगम थी आस्तिक बने, सहजानंदघन भव्य "३ २२ नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन वीतरागता पामवा, नेमि-चरण सुविचार ; राग ऋणे-जाने चढया, पछी चढया गिरनार ...१ एक बार रागे बंध्या, छूटे विरला कोय ; माटे राग न कीजिए, वीतराग वण लोय.२ काम-स्नेह-दृग-राग-क्षय, भगवद्-भक्ति पसाय ; सहजानंदघन दम्पति, सति-पति प्रणमुं पाय...३ २३ पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन चेतन चेतना फर्सतां, पूर्ण ध्रुव तद्रूप ; चिद्घन मूर्ति पार्श्व-प्रभु, केवल ज्ञान स्वरूप १ जगतज्ञान सर्वज्ञता, ते सर्वावधि ज्ञान ; तदतिक्रान्त केवल दशा, ए परमार्थ विज्ञान २ ए केवल अवलंबने प्रगटे स्वरूप ज्ञान ; संत कृपाए विरल ने, सहजानंदघन भान""३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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