Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

Previous | Next

Page 192
________________ धोखे की टट्टी से बचने का उपाय तो केवल सद्गुरु की कृपा एवं उनका अनुभव इशारा ही कार्यकारी है। इस कथन का वह मतलब नहीं है कि शास्त्रज्ञान संप्राप्त करना व्यर्थ है ; किन्तु यह मतलब है कि शास्त्र तो ज्ञानियों के कथन की साख पूरते हैं अतः ज्ञानियों की वाणी समझने में वे उपकारी होते हैं पर उनका अध्ययन गुरुगम पूर्वक होने पर ही वे कार्यकारी हैं अन्यथा जीव शास्त्रीय अभिनिवेश में ही उलझ कर साधना के भी योग्य नहीं रहता। १५. इस तरह जो कोई आत्मशान्ति का गवेषक उपरोक्त शान्तिस्वरूप के रहस्य को परमादर उल्लास और एकाग्रता के साथ सुनकर शुभ-प्रणिधान पूर्वक अर्थात् अपने मन को विषय कषायों से विमुक्त रख कर मन्त्र स्मरण, आत्म-चिन्तन, आत्मभावना आदि के द्वारा प्रशस्त करके वचन को प्रभ-कीर्तन, स्वाध्याय, शास्त्र-प्रवचन आदि के द्वारा प्रशस्त करके एवं काया को प्रभु-सेवा, तप-त्याग, इन्द्रियसंयम आदि के द्वारा प्रशस्त करके परा-भक्ति के सदनुष्ठान में एकनिष्ठ होकर हृदय की सतत धुलाई करता हुआ अपनी आत्मा को शान्त-रस से प्रभावित करेगा वह मुमुक्षु क्रमशः परमात्म-दर्शन आत्मसाक्षात्कार, आत्म, प्रतीति-आत्म-रमणता को प्राप्त करके सत्पुरुष बनेगा। और फिर बहुत से साधु-पुरुषों का मार्ग दर्शक बन कर वीतराग-सन्मार्ग की प्रभावना द्वारा सन्मान पाता हुआ क्षपकक्षेणि में आरोहण करके घाती कर्मों के घात पूर्वक-कैवल्य-लक्ष्मी से सुसज्ज होकर अनेक भव्य-जीवों का तारक बनेगा। अन्त में अघाती कर्मों से भी सर्वथा विमुक्त होकर सम्पूर्ण शुद्ध, स्थायी और सघन ज्ञानानन्द प्रधान साम्राज्य का अधिनायक हो अपने सिद्ध-पद पर स्थिर हो जायेगा। [ १२९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238