Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 213
________________ श्री नेमि जिन स्तवन ( राग - मारू - धणरा ढोला - ए देशी ) अष्ट भवांतर वालही रे, बाल्हा, तू मुझ आतमराम । मनरा वाल्हा । गति नारी आपणे रे, वा० सगपण कोइ न काम || मनरा० ॥ १॥ घर आवो हो बालम घर आवो, म्हारी आसा रा विसराम । मनरा० । रथ फेरो हो साजन रथ फेरो, म्हारा मनना मनोरथ साथ || मनरा० ॥२॥ नारी पखै स्यों नेहलोरे वा०, सांच कहै जगन्नाथ । मनरा० । ईसर अरधंगे धरी रे वा०, तू मुझ झाले न हाथ || मरा० ॥३॥ पशुजननी करुणा करी रे वा०, आणी हृदय विचार | मनरा० । माणसनी करुणा नहीं रे वा०, ए कुम घर आवार ॥ मनरा० ॥४॥ प्रेम कलपतरु छेदियो रे वा०, धरियो जोन धतूर । मनरा० । चतुराई रो कुण कहो रे वा०, गुरु मिलियो जग सूर ॥ मनरा० ॥ ५॥ म्हारो तो एह मां क्यूं नहीं रे वा०, आप विचारो राज । मनरा० । राजसभा मां बैसतां रे वा०, किसी बसी लाज ॥ मनरा० ॥६॥ प्रेम करें जग जन सहू रे वा०, निरवा है ते और । मनरा० । प्रीत करी नै छाँडि दे रे वा०, ते चाले न जोर ॥ मन० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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