Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 212
________________ चूरणि भाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परम्पर अनुभव रे। समय पुरुषनाँ अंग कहया ए, जे छेदे, ते दुर भवरे ॥षड् ॥८॥ मुद्रा बीज धारणा अक्षर, न्यास अरथ विनियोगे रे। जे ध्यावै ते नवि वंचीज, क्रिया अवंचक भोगे रे ॥षड्० ॥९॥ श्रुत अनुसार विचारी बोलू, सुगुरु तथा विधि न मिलै रे। किरियाकरि नविसाधी सकिये,ए विखवादचित सबल रे ॥ षड्० ॥१०॥ ते माटे ऊभा कर जोडी, जिनवर, आगल कहिये रे। समय चरण सेवा सुधदोज्यो, जिम आनन्दघन'लहिये रे ॥षड् ॥११॥ नमिनाथ जिन स्तवन के शब्दार्थ षड् दरसण=छः दर्शन-सांख्य, योग, मीमांसा, बौद्ध, चार्वाक और जैन। भगीजे= कहे जाते हैं। न्यास-स्थापना । षडंग =छः अंग-दोनों जंघा, दोनों बाहू, मस्तक, छाती। उपासक-उपासना करने वाले, आराधना करने वाले। सुरपादपकल्पवृक्ष, पायर, मूल जड़। वखाणं = वर्णन करूं। विवरण विवेचन । दुग=द्विक, दो, युगल, अखेदे खेद रहित, निःसंकोच । दुय-दो। कर हाथ । अलंबन = अवलंब, आधार । भजिये = मानिय। अवधारी =धारण करो। लोकायतिक= चार्वाक दर्शन, वृहस्पति प्रणीत नास्तिकमत । कूख =कुक्षि, उदर। उत्तम अंग= मस्तक । सुधारस=अमृतरस । सघला-सब। भजना=कहीं है कहीं नहीं है। तटनी-नदी। भृगी=भ्रमरी, भँवरी, कीट विशेष । ईलिका एक प्रकार का कीड़ा, कीट । चटकावै-डंक मारता है। जोवे रे-देखता है। दुरभव = दुर्भव्य, भटकता है, बुरी गति में जाता है। छेदे=अमान्य करे। विखवाद = दुख । सबले बल सहित, जबरदस्त । ते माटे= इस कारण । ऊभा खड़ा हूँ। आगल=आगे, सन्मुख । [ १४९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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