Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 210
________________ इम अनेक वादी मत विभ्रम, संकट पडियो न लहै। चित समाधि ते माटे पूछ, तुम बिण तत कोण कहै ॥ मु० ॥७॥ बलतूं जगगुरु इण परि भाखै, पक्षपात सहु छंडी। राग-द्वेष मोहे पख वरजित, आतम सूं रढ मंडी।मु०॥८॥ आतम ध्यान करै जो कोऊ, सो फिर इण में नावै । वागजाल बीजो सहु जाणे, एह तत्व चित चावै ॥ मु० ॥९॥ जे विवेक धरि ए पख ग्रहियो, ते ततज्ञानी कहिये । श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो, 'आनन्दघन' पद लहियै ॥ मु० ॥१०॥ मुनिसुव्रत जिन स्तवन के शब्दार्थ ___ तत= तत्त्व । नवि = नहीं । लहिये = प्राप्त करना । अबंध = बंध रहित, निर्लेप। दीसे = दिखाई देना। रीसे = रुष्ट-नाराज होता है। थावर = स्थावर, स्थिर रहने वाले प्राणी। जंगम = चलने फिरने वाले प्राणी । सरिखो - बराबर, समान । संकर=सांकय दोष । परिखो परीक्षा करो । नित्यज= एकान्त, नित्य । लीनो= निमग्न । मति हीनो = बुद्धिहीन, सुगत = बुद्ध भगवान । भूत = तत्व । चतुष्क = चार तत्व-पृथ्वी, पाणी, अग्नि और वायु । वरजी - रहित । अलगीअलग पृथक् । सकट = शकट, गाड़ी । ते माटे= इस कारण । वलतू = वापिसी में, उत्तर में। रढ = प्रीति । वाग जाल = वाणी व्यापार, बकवास । बीजो दूसरा। सहु सब । विवेक = परीक्षक बुद्धि । [१४७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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