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(२) अपने शुभाशुभ उपयोग - रूप चित्तवृत्ति प्रवार को सर्वथा मिटा देने के कारण भगवान कथंचित् महान योगी हैं, और कथंचित योगी नहीं, प्रत्युत महान भोगी हैं क्योंकि सम्पूर्ण स्वाधीन आत्मानन्द को निरन्तर भोगते ही रहते हैं । इतने पर भी मन-वचन-काय - त्रियोग और भौतिक भोग विलास से अत्यन्त उदासीन होने के कारण वे योगी हैं या भोगी ? जिसे समग्र रूप में एक शब्द द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता अतः वे कथंचित् अवक्तव्य हैं ।
- रूप
(३) स्वयं जन्म मरण आदि समस्त दुखों से परिमुक्त होने के कारण भगवान में विश्व भर के चराचर प्राणी मात्र के दुख मिटाने की शक्ति कथंचित है, और कथंचित नहीं भी है, क्योंकि सामर्थ्य की अव्यक्तदशा को शक्ति कहते हैं जबकि उनमें सामर्थ्य की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति हो चुकी है । फिर भी वे कर्तत्व - अभिमान शून्य सर्वथा उदासीन होने के कारण उनमें वैसी शक्ति - व्यक्ति है या नहीं ? जिसे समग्र रूप में एक ही शब्द द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता अतः वह कथंचित् अवक्तव्य है ।
( ४ ) भगवान के चरणों में सत्ता और वैभव सम्पन्न देव - देवेन्द्र और नर-नरेन्द्र आदि सभी नतमस्तक रहते हैं, क्योंकि उन्होंने विश्व में सार के सारभूत समस्त आत्म - वैभव को पा लिया है - अतः इस दृष्टि से भगवान में त्रिभुवन - प्रभुता कथंचित है; और कथंचित् नहीं भी है क्योंकि वे समस्त बाह्य भौतिक वैभव एवं राग आदि समस्त आन्तरिक-विभाव- वैभव से सर्वथा विमुक्त निर्ग्रन्थ हैं, इतने पर भी उनमें त्रिभुवन - प्रभुता किंवा निर्ग्रन्थता है या नहीं है ? यह भी समग्र रूप में एक शब्द द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे विश्व की प्रभुताई और निर्ग्रन्थता के चिन्ह से रहित केवल उदासीन हैं अतः उनमें वह कथंचित- अवक्तव्य है ।
(५) भगवान कथंचित् - वक्ता हैं, क्योंकि भक्त समूह को बोध -
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