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श्री श्रेयांस जिन स्तवन ( राग-गौडी-अहो मतवाले सजना-ए देशी )
श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे। अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे ॥ श्री श्रे० ॥१॥
सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे। मुख्य पणे जे आतमरामी, ते केवल निक्कामी रे ॥ श्री श्रे० ॥२॥
नजि सरुप जे किरिया साधे, ते अध्यातम लहिये रे। जेकिरिये करि चउ गति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे ॥ श्री श्रे० ॥३॥
नाम अध्यातम ठवण अध्यातम,द्रव्य अध्यातम छंडो रे । भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेह थी रढ मंडो रे ॥ श्री श्रे० ॥४॥
शब्द अध्यातम अरथ सुणी नै, निरविकल्प आदरज्यो रे। शब्द अध्यातम भजना जाणी, हान-ग्रहण मति धरज्यो रे ॥श्री श्रे०॥५॥
अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे। वस्तु गते जे वस्तु प्रकास, 'आनन्दघन' मत वासी रे ॥श्री श्रे० ॥६॥
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