Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पहुँचती हैं। विष्णुपुराण में भी जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, कोंच, शाक और पुष्कर ये सात द्वीप बतलाये हैं / ये सभी चूड़ी के समान गोलाकार हैं / इन सात द्वीपों के मध्य में जम्बूद्वीप है, जो एक लाख योजन विस्तृत है / इसी तरह गरुडपुराण और अग्निपुराण में भी सात द्वीपों का उल्लेख है और सभी में यह बताया है कि अन्य छह द्वीप इसे वलयाकार में घेरे हुए हैं। 5 इन द्वीपों का विस्तार क्रमशः दुगना-दुगना होता चला गया है। इन सात द्वीपों को सात सागर एकान्तर क्रम से घेरे हुए हैं / लवणसागर, इक्षुसागर, सुरासागर, घृतसागर, दधिसागर, क्षीरसागर और जलसागर-ये इन सात सागरों के क्रमशः नाम हैं। 46 बोबदष्टि से जम्बूद्वीप वैदिक परम्परा की तरह बौद्ध परम्परा में भी जम्बूद्वीप की चर्चा प्राप्त होती है / प्राचार्य वसुबन्धु ने अभिधर्मकोष में इस पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जम्बूद्वीप, पूर्व विदेह, गोदानीय और उत्तर कुरु ये चार महाद्वीप हैं। मेरु पर्वत के दक्षिण की पोर जम्बूद्वीप स्थित है / इसका प्राकार शकट के सदृश है। इसके तीन पार्श्व दो हजार योजन के हैं। इस द्वीप में उत्तर की ओर जाकर कीड़े की प्राकृति के तीन कोटाद्रि पर्वत हैं। उनके उत्तर में पुनः तीन कीटाद्रि हैं / अन्त में हिमपर्वत है। इस पर्वत के उत्तर में अनवतप्त सरोवर है जिससे गंगा, सिन्धु, वक्षु और सीता ये चार नदियां निकली। यह सरोवर पचास योजन चौड़ा है। इसके सन्निकट जम्बू पक्ष है, जिसके नाम से यह जम्बूद्वीप कहलाता है। जम्बूद्वीप के मानवों का प्रमाण 33 या 4 हाथ है। उनकी प्रायु दस वर्ष से लेकर अमित आयु कल्पानुसार घटती या बढ़ती रहती है। मैन दृष्टि से जम्बूद्वीप प्रस्तुत आगम में जम्बूद्वीप का प्राकार गोल बताया है और उसके लिए कहा गया है कि तेल में तले हुए पूर जैसा गोल, रथ के पहिये जैसा गोल, कमल की कणिका जसा गोल और प्रतिपूर्ण चन्द्र जैसा गोल है। भगवती, जीवाजीवाभिगम,४६ ज्ञानार्णव,५० विषष्टिशलाका पुरुषचरित, लोकप्रकाश,५२ माराधना४२. विष्णुपुराण 2 / 215 43. गरुडपुराण 115414 44. अग्निपुराण 108 / 1 45. (क) अग्निपुराण 108 // 3,2 (ख) विष्णुपुराण 2 / 217,6 (ग) गरुडपुराण 115403 (घ) श्रीमद्भागवत // 1 // 32-33 46. (क) गरुडपुराण 115415 (ख) विष्णुपुराण 2216 (ग) अग्निपुराण 108 / 2 47. अभिधर्मकोष 3, 45-87 48. भगवतीसूत्र 11110 49, खरकांडे किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरीसंठिए पण्णत्ते / -जीवाजीवाभिगम सू. 3 / 1674 50. मध्ये स्याज्झल्लरीनिभः / -ज्ञानार्णव 33 // 51. मध्येतो झल्लरी निभः। -त्रिषष्टिशलाका पु. च. 2131479 52 एतावान्मध्यलोक: स्यादाकृत्या झल्लरीनिभः। --लोकप्रकाश 12045 [23] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org