Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नमो नमो निम्मल दंसणस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामिने नमः
१८ जंबुद्दीव पन्नत्ती
सत्तमं उगं
पढमो वक्खारो
(१) नमो अरिहंताणं, तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम नयरी होत्या-रिद्धत्थिमियसमिद्धा बण्णओ तीसे णं मिहिलाए नवरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीमाए एत्य णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्या वण्णओ जियसत्तू राया धारिणी देवी वण्णओ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो परिसा निग्या धम्पो कहिओ परिसा पुडिगया । 91-1
(२) तेणं कालेजं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयमे गौत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरससंठाणसंठिए चउनाणोवगए एवं वयासी- 1२1-2
(३) कहि णं भंते जंबुद्दीचे दीये केमहालए णं मंते जंबुद्दीवे दीवे किसंठिए णं भंते जंबुद्दीवे दीवे किमागारभाव पडोयारे णं भंते जंबुद्दीवे दीवे पत्ते गोयमा अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभितरए सव्वखुडाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए वट्टे रहचक्कबालसंठाणसंठिए चट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए वट्टे पडिपुत्रचंदसंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिष्णि जोयणसयसहस्सइं सोलस सहस्साइं दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेयेणं ॥ ३ ॥ -3
(४) से णं एगाए वइराभईए जगईए सव्यओ समता संपरिक्खित्ते सा णं जगई अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं मूले वारस जोयणाई चिक्खंभेणं मज्झे अड्ड जोयणाई विक्खंभेणं उयरिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं मूले विच्छिण्णा मज्झे संक्खित्ता उवरिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइमई अच्छा सहा लहा घट्टा मट्टा नीरया निम्पला निष्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पमा समिरीया सउज्जीया पासादीया दरिसणिजा अभिरुवा पडिरूवा सा णं जगई एगेणं महंतगवक्खकडएणं सब्बओ समता संपरिक्खिता से णं गधक्खकडए अद्धजोयणं उद्धं उम्रत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं सव्वरपणामए अच्छे जाव पडिरूवे तीसे णं जगईए उप्पिं बहुमज्झेदेसभाए एत्य णं महई एगा पउमचरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं जगईसमिया परिक्खेयेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे तं जहावइरामया नेमा एवं जहा जीवाभिगमे जाव अट्ठो जाय धुवा नियया जाव निच्चा |४|
(५) तीसे णं जगईए उपिं परमवरवेश्याए बाहिं एत्य णं महं एगे वणसंडे पत्रत्ते- देसणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं जगईसमए परिक्खेवेणं वणसंडवण्णओ नेयच्चो 141-5
(६) तस्स णं यनसंडस्स अंतो बहुसमरमणि भूमिभागे पन्नत्ते से जहनामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिए तं जहा - किण्डेहिं जाव सुक्कलेहिं एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो पुक्खरिणीओ पव्वयगा घरगा मंडवगा पुढविसिलावट्टया प नेयव्या तत्य णं यहवे वाणमंतरा देवाय देवीओ य आसयंति सयंति चिह्नंति निसीयंति तुयनंति रमंति
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 130