Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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यक्खारो-३
ओघमेयं सत्तरतं वासं बासमाणंपासइ पासित्ता धम्मरयणं परामुसइ-तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भाणियव्वो जाब दुबालसजोयणाई तिरियं पवित्यरइ तत्व साहियाई तए णं से भरहे राया सखंधारबले चम्मरयणं दुहइ दुरुहित्ता दिव्यं छत्तरयणं परामुसइ-तए णं नवणउइसहस्रकंचणसलागपरिमंडियं महरिहं अओझं निव्वण-सुपसत्य - विसिट्ठलट्ठ-कंचणसुपुट्ठदंडं मिउरायतबट्टलडअरविंदकण्णिय- समाणरूवं वत्थिपए से य पंजरविराइयं विविहभत्तिचित्तं मणि-मुत्त-पवालतत्ततवणिज्ज -पंचवण्णियधोतरवणरूवरइयं रयणमिरीईसमोप्पणाकम्पकारमणुरंजिएल्लियं रायलच्छिचिंधं अगुणसुवण्णपंडुरपञ्चत्थुपयट्ठदेसभागं तहेव तवणिज्जपट्टधम्मंतपरिगयं अहियसस्सिरीयं सारयरयणियरविमलपडिपुत्रचंदमण्डलसमाणरूवं नरिंदवामप्पमाणपगइवित्थडं कुमुदसंडधवलं रण्णो संचारिमं विमाणं सुरातववायबुट्ठिदोसाणं य खयकरं तचगुणेर्हि लद्धं । ५९-१/-59-1 (८६ ) अहयं बहुगुणदाणं उऊण विवरीयसुकयच्छायं छत्तरयणं पहाणं सुदुल्लाहं अप्पुण्णाणं
-
119811-1
(८७) प्रमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभागं विमाणवासेवि दुल्लहतरं वग्घारियमल्लदामकलावं सारयधवलय्म-रयणिगरप्पगालसं दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुन्नचंदो तए णं से दिव्वे छत्तरतणे भरहेणं रण्णा परामुट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई पवित्यरइ साहियाई तिरियं ॥५९/-59
(८८) तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुवरिं ठवेइ ठवेत्ता मणिरयणं परानुसइ-चेढो जाब छत्तरयणस्स बत्थिभागंसि ठबेइ तस्स य अणतिवरं चारुरूवं सिलणिहियत्यमंतसित्त-सालिजव - गोहूम - मुग्ग- मास- तिल-कुलत्थ-सट्ठिगनिष्फाव-चणग-कोहव- कोत्युंभरि कंगु-बरग-रागअगधण्णावरण हरितग- अलग- मूलग-हलिद्दि-लाउय-तउस- तुंब- कालिंग कविट्ठ-अंब-अंबि - लिय- सव्वणिफायए सुकुसले गाहावइरयणेत्ति सव्वजणवीसुतगुणे तए णं से गाहाबइरयणे भरहस्स रण्णो तद्दिवसप्पइण्ण-निष्फइय-पूयाणं सव्वधष्णाणं अणेगाई कुंभसहस्साई उवट्ठयेति तए णं से भरहे रावा चम्मरयणसमारूढे छत्तरयणसमोच्छन्ने मणिरयणकउज्जोए समुग्गयभूएणं सुहंसुहेणं सत्तरतं परिवसइ- १६०1-60
(८९) नवि से खुहा न तण्हा नेव भयं नेव विजए दुक्खं
४१
भारहाहिवस्स रण्णो खंधावारस्सवि तहेव
॥२०|--1
(१०) तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि इमेचारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था केस णं मो अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे [हीणपुत्रचाउद्द हिरिसिरि] परिवज्जिए जेणं ममं इमाए एयारूवाए [दिव्याए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लाए पत्ताए] अभिसमण्णागयाए उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठि प्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरतं वासं वासइ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो इमेयारूवं अज्झत्थिवं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकष्पं समुप्पण्णं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सण्णज्झिउं पवत्ता यावि होत्या तए णं ते देवा सणद्धबद्धवम्मियकवया [ उप्पीलिपसरासणपट्टिया पिणद्धगेवेज्ज-बद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणा जेणेव ते मेहमुहा नागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छति
वागच्छित्ता मेहमुहे नागकुमारे देवे एवं वयासी-हं भी मेहमुहा नागकुमारा देवा अपत्थियपत्थगा [दुरंतपंतलक्खणा हीणपुत्रचाउद्दसा हिरिसिरिं । परिवजिया किण्णं तुटमे न याणह भरहं रावं चाउरंतचकूकवट्टि महिड्ढीयं जाव उद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा तहावि णं तुम्भे भरहस्स रणो
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