Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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चक्खारो-३
तहा सव्वं भाणियव्वं जाय पञ्चणुभवमाणे विहरति । ६१/- 61
(९६) तए णं दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे [जक्खसहरूसंपरिवुडे दिव्यतुडियसद्दसण्णिणादेणं पूरेंते चेव अंवरतलं उत्तरपुरत्थिमं दिसिं चुल्लहिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्या तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरत्थिमं दिसिं चुल्लहिमवंत-पव्ययाभिमुरं पयातं पासइ जाव जेणेव चुल्लहिमवंतपव्वए तेणेव उपागच्छइ उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंतवा सहरपव्वयस्स अदूरसामंते दुवालसजीयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेस कोइ जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्टमभत्तं पगिन्हइ तहेव जहा मागहकुमारस्स नवरं - उत्तरदिसाभिमुहे जेणेव चुल्लहिमवंतवासहपव्वए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंतदासहरपव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ फुसित्ता तुरए निगिण्हइ निगिन्हित्ता रहं ठवेइ ठवेत्ता धणुं परामुसइ तहेच जाव आयातकष्णायतं च काऊण उसुमुदारं इमाणि वचणाणि तत्थ भाणीय से नरबई- [हंदि सुणंतु भवंतो बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा नागासुरा सुवण्णा तेसि खु नमो पणिवयामि हंदि सुणंतु भवंतो अमितरओ सरस्स जे देवा नागासुरा सुवण्णा] सव्वे मे ते विसयवासी इतिक उडूढं वेहासं उसुं निसरइ-परिगरणिगरियमज्झो [वाउयसोभमाणको सेज्जोचित्तेण सोभते धणुवरेणं इंदोच्च पञ्चक्खं तं चंचलायमाणं पंचविमचंदोवमं महाचावं छज्जइ वामे हत्थे नरवइणो तंमि विजयंमि] तए णं से सरे भरहेणं रण्णा उड्ढं वेहासं निसठ्ठे समाणे खिप्पामेव बाबत्तरि जोयणाई गंता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स मेराए निवइए तए णं से चुल्लहिमवंतगिरिकुमारे देवे मेराए सरं निवइयं पासइ पासित्ता आसुरुते रुट्ठे जाव पीइदानं सव्वोसहिं च मालं गोसीसचंदणं कहगाणि जाव दहोदगं च गेहइ गण्हित्ता ताए उक्किद्वाए [तुरियाए चलाए जइणाए सीहाए सिघाए उद्धयाए दिव्याए देवराईए वीईक्यमाणे- बीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता अंतलिक्खपडिवण्णे संखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहिंयं दसण्णहं सिरसावत्तं मत्यए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेई वद्धावेत्ता एवं वयासी- अभिजिए देवाप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे] उत्तरेणं चुल्लहिमवंत गिरिमेराए अहणणं देवाणुप्पियागं विसयवासी [अहण्णं देवाणुष्पिवाणं आणत्ती- किंकरे ] अहण्णं देवाणुप्पियाणं उत्तरिल्ले अंतवाले तं चैव जाव पडिविसज्जेइ ६२/- 62
(९७) तए णं से भरहे राया तुरए निगिण्हइ निर्मिहिता रहं परावत्तेइ परावत्तेत्ता जेणेव उहकूडे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छ्रिता उसहकूडं पव्ययं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ फुसित्ता तुरए निगिण्हइ निगिन्हित्ता रहं ठवेइ ठवेत्ता छत्तलं दुबालसंसियं अट्टकण्णियं अहिगरणिसंठिय सोवणियं कागणिरवणं परामुसइ परामुसित्ता उसभकूडस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लेसि कडगंसि नामगं आउडेइ - ६३-१ | -63-1
(९८) ओसप्पिणी इमीसे तइयाए समाइ पच्छिमे भाए अहमंसि चक्कवट्टी भरहो इति नामधे जेणं
( १९ ) अहमंसि पढमराया इहई भरहाहवो नरवरिंदो
४३
॥२५॥-1
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सत्तू यिं भारहं वासं
॥२६॥३-2
(१००) इतिकट्टु नामगं आउडेइ आउडेत्ता रहं परावत्तेइ परावत्तेत्ता जेणेव विजयाखंधावार

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