Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पायरो-२ ओ पचोरुहइ पञ्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ ओमुइता सयमेव चउर्हि अट्टाहि लोयं करेइ करेत्ता छट्टे पत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियामंचउहिंसहस्सेहिं सद्धिं एगंदेवदूसमादाय मुडें भविता०पव्वइए।३१1-30 (४) उसमे णं अरहा कोसलिए संवच्छां साहियं चीयरधारी होत्या तेणं परं अचेलण जप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तप्पभिइ चंणं उसमे अरहा कोसलिए निधं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पजंति तं जहा-दिव्या वा [माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा] पडिलोमा वा अनुलोमा वा तत्य पडिलोमा-वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए या] कसेण वा काए अउद्देजा अणुलोमा-बंदेज वा जाव पज्जुवासेज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खपइ तितिक्खई] अहियासेइ तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए जाव पारिहावाणियासमिए मणसमिए [वइसमिए] कायसमिए मणगुत्ते जाव गुतिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे [अमाणे अमाए] अलोहे संते पसंते उवसंते परिणिव्युड़े छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे उच्चकणगमिद जायसवे आदरिसपलिमागे इव पागडमागे कुम्मे इव गुत्तिदिए पुक्खरपत्तमिव निरुवलेवेगगणमिव निरालंबणे अणिले इव निरालए चंदोइवसोमदंसणे सूरो विव तेयसी विहगो विय अपडिबद्धगामी सागरो विव गंभीरे मंदरो विव अकंपे पुढवी विय सव्वफासविसहे जीवो विव अप्पडिहयगती नत्थिणं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे तं जहादव्यओ खेत्तओ कालओ भावओ पव्वओ-इह खलु माया मे पिया में पाया मे मगिणी मे जाव संगंथसंधुया मे हिरणं मे वण्णं मे जाव उवगरणं मे अहवा समासओ सच्चित्ते वा अचित्ते वा मीसए वादबजाए सेवं तस्सन मवइ खेतओ गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खेते वा खले वा गेहे वा अंगणे वाएवं तस्स न भवइ कालो-योवेवालवेवा मुहूत्तेचा अहोरत्ते वा पक्खेवा मासे वाउऊ वाअयणे या संवच्छो वा अण्णयरे या दोहकालपडिबंधे एवं तस्स न मवइ मावओ-कोहे वा [माणे वा मायाए या लोहे' वा भए वा हासे वा एवं तस्स न भवइ से णं भगवं वासापासयझं हेमंत-गम्हासु गामे एगराइए नगरे पंचराइए ववगयहास-सोगअरइ-मयपरित्तासे निष्ममे निरहंकारे लाभए अगये वासीतछणे अदुढे वंदणाणलेवणे आते लेमि कंचणमि य समे इहपरलोए य अपडिबद्धे जीवियपरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्धायणट्ठाए अहिए विहरइ, तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे याससहस्से विइक्कते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिया सगडमुहंसि उजाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे नाणंतरियाए वहमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कासीए पुव्वण्हकालसमयंसि अट्टमेणं मत्तेणं अपाणएणं उत्तरासादानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अनुत्तरेणं नाणेणं जाव चरित्तेणं अनुत्तरेणं तवेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीए मुत्तीए तुट्ठीए अजवणं मद्दवेणं लाघवेणं सुचरियसोवचियफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावपाणस्स अनंते अनुतरे निव्याधाए निरायरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलबरनाणदंसणे समुप्पाने जिने जाए केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस लोगस्स पञ्जवे जाणइ पासइ तं जहा-आगइंगइठिई उववायंभुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकतंतं कालं मणवइकाइएजोगे एवमादी जीवाणवि सव्यमाचे अजीवाणवि सब्वमावे मोक्खमग्गस्स विसुद्धतराए भावे जाणमागे पासमाणे एस खलु मोक्खमग्गे मम अण्णेसि च जीयाणं हियसुहिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परमसुहसमाणणे भविस्सइ तते णं से भगवं समणाणं निग्गंधाणं य निग्गंधीण य पंच For Private And Personal Use Only

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