Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वखारो-३
પ
मुहं पयातं चापि पासइ पासिता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए जाव जेणेव वेयडूढपुव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वेयड्स्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिष्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधा वारनिवेस करेइ करेत्ता 'जाव वेयड्ढगिरिकुमारस्य देवस्स अट्ठममत्तं पगिण्हइ पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे बबगयमालादण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्यमुसले दव्मसंधारीयगए अट्टमभत्तिए वेयड्ढगिरिकुमारं देवं मणसीकरेमाणे- मणसीकरेमामे चिट्ठा तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्टमत्तंसि परिणममाणंसि वेय- इढगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं चलइ एवं सिंधुगमो नेयव्दी पीइदाणं-आमिक्कं रयणालंकारं कड़गाणि य तुडियाणि य वत्याणि य आभरणाणि य गेह हित्ता ताए उक्कट्ठा [तुरियाए चलाए जइणाए सीहाए सिधाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए बीमाणे- चीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ उयागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे संखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ बद्धावेत्ता एवं वयासी- अभिजिए णं देवाणुम्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे अहरणं देवाणुप्पियाणं विसयवासी अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-किंकरे तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्टु आभिसेकूकं रयणालंकारं कड़गाणि य तुडियाणि य वत्याणि य आभरणाणि य उवणेइ तए णं से भरहे राया वैयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स इमेयास्ववं पीइदाणं पड़िच्छइ पडिच्छित्ता वेयड्ढगिरिकुमारं देव सक्कारेइ सम्पाणेइ सक्कारेत्ता सम्मात्तापडिदिसतए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव मणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पहाए कयबलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्टममत्तं पारेइ पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उबागच्छइ उयागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे निसीयइ निसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेद सद्दावेत्ता एवं बयासी - खिप्यामेद भो देवाणुप्पिया उत्सुक्कं उक्करं उक्कििट्टं अदिजं अमि अमडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अनेगतालायराणुचरियं अनुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय- सपुरजण जाणवयं विजयवेजइयं वेड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह करेत्ता पम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह तए णं ताओ अट्ठारस सेणिपीओ भरणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणी ओ हनुट्ठाओ जाय अट्ठाहियं महामहिमं करेति करेत्ता तमाणत्तियं पञ्चष्पिणंति तए णं से दिव्ये चक्करयणे वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए [आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्रसंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसण्णिणाणादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं ] पचत्विमं दिसिं तिमिसगुहाभिमुहे पयाए आवि होत्या तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं पथिमं दिसि तिमिसगुहाभिमुहं पयातं धावि पासइ पासित्ता हट्टतुट्ठ - चित्तमाणंदिए जाव तिमिसगुहाए अदूरसामंत दुवालस- जोयणायामं नवयोजणविच्छिण्णं [वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेस करेइ करेत्ता वड्ढद्दरयणं सद्दावेई सद्दावेत्ता एवं व्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया मम आवासं पोसहसालं च करेहि करेत्ता ममेयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहिं तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं चुते समाणे तुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइम परमसोमणस्सिए हरिसवसविसम्प
1813
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130