Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पवारो-३ रबाठद्धचंदचिंधं काल-हरिय-रत्त-पीय सुक्किल-बहुण्हारुणि संपणद्धजीव जलजीवं जीवियतकरणं धणुं गहिऊण से नरवई उसु च यरवडरकोडियं पाइरसारतुंडं कंचणमणिकणगरयणधोइछसुकयपुंखं अणेगमणिरयण-विविह-सुविरइयनामचिंधं वइसाहं ठाईऊण ठाणंआयतकण्णायत्तंच काऊण उसुमुदारं इमाई वयणाइंतत्थ भाणिय से नरवई-४६-११-45-1 (६३) हंदि सुणंतु भयंतो वाहिरओखलु सरस्सजे देवा नागासुरा सुवण्णा तेसि खु नमो पणिवयामि
॥१२॥1 (६५) हंदि सुगंतु भयंतो अमितरओ सरस्स जे देया
नागासुरा सुवण्णा सव्वे मे ते विसयवासीइतिकडउसु निसिरइ ॥१३॥2 (६५) परिगरणिगरियमझो वाउट्यसोभमाणकोसेञ्जो चित्तेण सोमते धणुवरेणं इंदोव्व पञ्चक्खं
||१४| (६६) तं चंचलायमाणं पंचपिचंदोक्मं महाचावं छनइ यामे हत्ये नरवइणो तंमि विजयंमि
॥१५॥4 (६७) तए णं से सरे परहेणं एण्णा निसट्टे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देयस्स भवणंसि निवइए तएणं से मागहत्यिहिबई देवे भवणंसि सरं निवइयं पासइ पासित्ता आसुरुत्ते रुडे चंडिक्किए कुविए भिसिमिसेमाणे तिवलियं मिउर्डि निहाले साहरइ साइरित्ता एवं वयासी-केस णं भो एस अपस्थियपत्यए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुत्रचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवञ्जिए जेणं मम इपाए एयारूवाए दिव्याए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवाणुमावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमागयाए उपिं उप्पुस्सुए भवणंसि सरं निसिरइत्ति-कट्ट सीहासणाओ अब्मुढेइ अब्भुढेत्ता जेणेव से नामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता तं नामाहयकं सरंगेहइगेहिता नामकं अनुप्पवाएइ नामकं अनुष्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपञ्जित्या-उप्पन्ने खलु भो जंबुद्दीदे दीवे मरहे वासे भरहे नामं राया चाउरंतवक्कवट्टी तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं मागहतित्यकुमाराणं देवाणं राईणपुयत्याणियं करेत्तए तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्सरण्णो उवत्याणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ संपेहेता हारं मउडं फंडलाणि कडपाणि य तुडियाणि य वत्याणि य आपरणाणि य सरं च नामाहयं मागहतित्योदगंघ गेण्हइ गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव देवगईए वीईवयमाणे-धीईवयमाणे जेणेव परहे राया तेणेव उवागच्छइ उदागच्छिता अंतलिक्खपडिवण्णे संखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयल-परिगहियं जाव अंजलि कट्ट मरहं रायंजएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए गं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे पुरस्थिमेणं मागहतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी अहण्णंदेवाणुप्पियाणं आणत्ती किंकरे अहणंदेवाणुप्पियाणं पुरत्यिमिल्ले अंतवाले तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ममंइमेयारूवं पीइदाणंतिकटु हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य जाव मागहतित्योदगं च उवणेइ तए णं से परहे राया मागहतित्थकुमारस्स देयस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ पडिच्छित्ता मागहतित्यकुमारं देवं सक्कारेइ जाव पडिविसजेइ तए णं से भरहे राया रहं परावतेइ परावत्तेता मागहतित्येणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्ताइ पच्चुत्तरित्ताजेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ उयागच्छित्ता तुरगे निगिहित्ता रहं ठदेइ ठवेत्ता रहाओ पचोसहति पचोरुहिता
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130