Book Title: Agam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ जंतुदीय पनत्ती-२१३७ सिस्सेइ वा मयगेइ वा भाइल्लएइ वा कम्मारएइ वा नो इणढे समटे ववगयआपिओगाणं ते मणुया पन्नत्ता समणाउसो अस्थि णं मंते तीसे सपाए मरहे वासे मायाइ वा पियाइ वा भाया-भगिणि-भजापुत्त-धूया-सुण्हाइ वा हंता अस्थि नो चेच पं तिब्बे पेम्मबंधणे समुप्पाइ अस्थिणं भंते तीसे सपाए मरहे वासे अरीइ वा वेरिएइ या धायएइ वा वहएइ वा पहिणीयए वा पञ्चामित्तेइ वा नो इणढे समढे ववगयवेराणुसया णं ते मणुया पन्नत्ता समणाउसो अत्यिक मंते तीसे सपाए मरहे वासे मित्ताइ वा वयंसाइ वा नायएइ वा घाडिएइ वा सहाइ वा सुहीइ या संगइएति वा हंता अस्थि नो चेव णं तेर्सि मणुयाणं तिब्बे रागबंधणे समुपज्जइ अत्थिणं मंतेतीसे समाए परहे वासे आवाहाइ वा वीवाहाइ या जण्णाइ वासद्धाइ या थालीपागाइ वा पिति- पिंडनिवेदणाइवानो इणट्टे समट्टे ववगयआवाह-जाव पितिपिंडनि- वेदणाणं ते मणुया पत्रत्ता सपणाउसोअस्थि णं मंते तीसे सपाए मरहे वासे इंदमहाति ना खंद-नाग-जक्ख-भूप-अगड-तलाग-दह-नदि-रुक्ख-पव्यय-थूम-चेश्यमहाइ या नो इगढे समढे ववगय-महिमा णं ते मणुया पत्नत्ता सरणाउसो अस्थिणं पते तीसे सपाए भरहे वासे नइपेच्छाइ वा नट्ट-जल्ल-मल्ल-मुठ्ठिय-वेलंयग-कहग-पवग-लासगपेच्छाइ वा नो इणढे सपढे ववगयकोउहल्ला णं ते मणुया पनत्ता समणाउसो अस्थि णं मंते तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ या रहाइ वा जाणाइ वा जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीअ-संदमाणिआइ वा नो इंगटे समटे पायचारविहारा गं ते मण्या पत्रत्ता समणाउसो अस्थि णं मंते तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा महिसीइ वा अयाइ वा एलगाइ या हंता अस्थि नो चेवणं तेसिं मणुयाणं परिमोगत्ताए हव्यामागच्छति अस्थि णं भंते तीसे समाए मरहे वासे आसाइ वा हत्यि-उ-गोण-गवय-अय-एलग-पसय-मिय-वराहरुरु-सरभ चमर-कुरंग-गोकण्णमाइया हंता अस्थि नो वेवणं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्यमागच्छति अस्थिणं भंते तीसे समाए मरहे वासे सीहाइ या वग्याइ वा विग-दीविग-अच्छ-तरच्छ-सियाल-बिडाल-सुणग-कोकंतियकोलसुणमाइया हंता अस्थिनोचेयणं ते अण्णमण्णस्स तेसिवा मणुयाणं आवाहं वा वाबाहं वा छ-ि वच्छेयं वा उप्पाएंति पगइभहया णं ते सावयगणा पनत्ता समणाउसोअत्यिणं मंते तीसे समाए परहे वासे सालीति वा वीहि-गोहूम-जय-जवजवाइ वा कल-मसूर-मुग्ग-मास-तिल-कुलत्थ-निष्फावगआलिसंदग-अय-सि-कुसुंभ-कोद्दव-कंगु-वरग-रालग-सण-सरिसव-मूलाहीआइ वा हंता अस्थि नो चेवणंतेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्यमागच्छंति अस्थिणंभंते तीसे समाए भरहे वासे गड्ढाइ वा दरी-ओयाय-पवाय-विसम-विजलाइ या नोइणवै समढे भरहे वासे बहुसमरमणिज्ने भूमिभागे पन्नत्ते से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा अस्थि णं मंते तीसे समाए भाहे वासे खाणूह या कंटग-तणयकयवराइवा पत्तकयवराइ या नो इणद्वेसमडे क्वगयखाणुकंटगतणकयवर-पत्तकयवराणं सासमा पन्नत्ता समणाउसो अस्थि णं मंते तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा मसगाइ वा जूआइ या लिक्खाइ वा ढिंकुणाइ वा पिसुआइ वा नो इणडे समटे यवगय इंस-मसग जाच उवद्दवविरहिया णं सा समा पन्नत्तासमणाउसो अस्थिणं भंते तीसे समाए भरहे वासेअहीइ वा अपगराइ वा हंता अत्यि नो चेयणं तेसिं पणुयाणं आबाहं वा वावाहं वा छविच्छेयं वा पगइभद्दया पंतेवालगगणा पन्नत्ता सपणाउसो अस्थि णं भंते तीसे समाए भाहे वासे डिबाइ वा डमराइ वा कलह-बोल-खार-देर पहाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्यपडणाइ या महापुरिसपडणाइ वा महारुधिरपडणाति वा गोयमा नो इणडे सपढे ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुया पन्नत्ता समणाउसो अस्थि णं भंते तीसे समाए परहे वासे दुट्यूयाति वा कुलरोगाइ वा गामरोगाइ या मंडलरोगाइ वा पोट-सीसवेपणाइ वा कण्णो?-अच्छि For Private And Personal Use Only

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