Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मैचन्द्रिका टीका श०२५ उ.५ ०१ पर्यवादिनिरूपणम्
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द्विविधाः पर्यवाः प्रज्ञप्ता इति, 'तं जहा ' तद्यथा 'जीवपज्जवा य अजीवपज्जवा य' जीवपर्यवाच अजीवपर्यवाच तत्र जीवपर्यवाः जीवधर्माः, एवमजीवपर्यवा:अजीवधर्मा इति । सहभाविनो गुणाः शुक्काऽऽदयः, क्रमभाविनो पर्यायाः, 'पज्जवपयं निरवसेसं भाणियम्बं जहा पनत्रणाए' पर्यत्रपदं निरवशेषं भणितव्यम् यथा प्रज्ञापनायाम् । पर्यवपदं च विशेषपदापरपर्यायं प्रज्ञापनायां पञ्चमं पदम् तच्चैवम 'जीवपज्जवा णं भंते! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता ? गोयमा ! नो संखेज्जानो असंखेज्जा अनंता' इत्यादि, जीवपर्यवाः खलु भदन्त । किं संख्येया असंख्येया अनन्ता वा भवन्तीति प्रश्नः । हे गौतम! नो संख्येयाः, उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! दुविहा पज्जवा पन्नत्ता' हे गौतम! पर्यायें दो प्रकार की कही गई है। पर्यव, गुण' धर्म, विशेष' ये सब पर्यायों के नामान्तर हैं । 'तं जहां' वे दो प्रकार ये हैं- 'जीव पज्जया य अजीवपज्जवा य' एक जीव पर्याय और दूसरी अजीवपर्याय, जीव के धर्म जीव पर्याय हैं और अजीव के धर्म अजीव पर्याय हैं। 'पज्जवपयं निरवसेसं भाणियनं जहा पनवणाए' प्रज्ञापनासूत्र में पर्यव पद यह विशेष पद है और यह पांचवां पद है वह इस प्रकार से है'जीवपज्जवा णं भंते ! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता ? गोयमा । नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अनंता' हे भदन्त ! जीव पर्यव क्या संख्यात है ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है कि हे गौतम । जीव पर्यव न संख्यात है न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त हैं । इत्यादि । इस प्रकार से यहां प्रज्ञापना सूत्र का समग्र पर्यव उत्तरमां प्रभुश्री गौतमस्वाभी ने छे है- 'गोयमा दुविहा पञ्जवा पन्ना गौतम ! पर्याय में अहारता उद्या है, पर्यंव, गुणु, धर्म विशेष मा अधा पर्यायाना नाभी छे 'तं जहा' ते मे प्रहरी प्रभाछे 'जीवपज्ज वाय अजीवपज्जवा य' मे पर्याय भने मील मलव पर्याय भवना धर्मोते व पर्याय छे भने अभवना धर्भे ते लव पर्याये। छे. 'पज्जव पयं निरवसेस भाणियव्व" जहा पन्नवणाए' प्रज्ञापना सूत्र यह પર્યાય પદ છે, તે સમગ્ર અહિયાં કહેવુ જોઇએ તે પદ આ પ્રમાણે છે. 'जीवपज्जवाणं भंते! कि संखेज्जा असंखेज्जा अनंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणता' हे भगवन् भव पर्याय। शु' सख्यात हो ? असंख्यात छे ? અનત છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ ! જીવ પર્યાચા સખ્યાત નથી તેમ અસખ્યાત પણ નથી. પરંતુ પર્યાય પદ સમ્પૂર્ણ અહિયાં કહેવુ જોઈએ. જીવ પર્યાય
અનંત છે ઈત્યાદિ અનંત એટલા માટે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬