Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 7
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - २५.२६ सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे मृत्यु के पार नहीं जा सकते । ..... वे मृत्यु, व्याधि और बुढ़ापे से आकुल संसार रूपी चक्र में पुनः पुनः नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं। सूत्र-२७ ___ वे ऊंच और नीच गतियों में भटकते हुए अनन्त बार गर्भ में आएंगे । - ऐसा जिनेश्वर ज्ञातपुत्र महावीर ने कहा है। -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१ - उद्देशक-२ सूत्र-२८ कुछ कहते हैं कि जीव पृथक्-पृथक् उत्पन्न होते हैं, सुख दुःख का अनुभव करते हैं और अपने स्थान से लुप्त होते हैं, मरते हैं। सूत्र - २९ वह दुःख न तो स्वयं कृत होता है और न ही अन्यकृत । वह सुख या दुःख सिद्धि सम्बद्ध हो, असिद्धि/संसारसम्बद्ध हो, नियतिकृत होता है। सूत्र - ३० जीव तो स्वयंकृत का अनुभव करते हैं और न ही अन्यकृत । वह तो सांगतिक/नियतिकृत होता है । ऐसा कुछ (नियतिवादी) कहते हैं । सूत्र -३१ इस प्रकार कहने वाले मूढ़/अज्ञानी होते हुए भी स्वयं को पंडित मानते हैं । वे अज्ञ नहीं जानते कि कुछ सुख-दुःख नियत होते हैं और कुछ अनियत । सूत्र - ३२ ___ इस प्रकार कुछ पार्श्वस्थ-नियतिवादी धृष्टता करते हैं । वे साधना पथ पर उपस्थित होकर भी स्वयं को दुःख से मुक्त नहीं कर सकते। सूत्र-३३ जैसे वेगगामी मृग परितान से भयभीत और शान्त होकर अशंकित के प्रति शंका करते हैं और शंकित के प्रति अशंकी रहते हैं। सूत्र - ३४ वे मगजाल के प्रति शंकास्पद और बन्धन के प्रति निःशंक होते हैं । वे अज्ञान और भय से उद्विग्न होकर इधर-उधर दौड़ते हैं। सूत्र - ३५ यदि वे मृग छलांग भरते हुए उस बन्धन को लांघ जाएं या उसके नीचे से नीकल जाए, तो वे पद-पाश से मुक्त हो सकते हैं, किन्तु वे मंदमति उसे देख नहीं पाते । सूत्र - ३६ वे अहितात्मा और हितप्रज्ञाशून्य मृग पाश/बन्धन-युक्त मार्ग से जाते हैं और उस बन्धन में बंधकर मृत्यु प्राप्त करते हैं। सूत्र-३७ इस प्रकार कईं मिथ्या-दृष्टि अनार्य श्रमण अशंकनीय के प्रति शंका करते हैं और शंकनीय के प्रति निःशंक रहते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 7

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