Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम का नाम 'सूयगडो' है। समवाय, नंदी और अनुयोगद्वार-तीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है।' नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने प्रस्तुत आगम के तीन गुण-निष्पन्न नाम बतलाए हैं
१. सूतगड-सूतकृत २. सुत्तकइ-सूत्रकृत ३. सूयगड-सूचाकृत
प्रस्तुत आगम मौलिकदृष्टि से भगवान् महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रंथरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम सूतकृत है।
इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है । इसमें स्व और पर समय की सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम सूचाकृत है।
वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं । आकारभेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई।
सभी अंग मौलिक रूप में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं। फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही 'सूतकृत' नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है । प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है । क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूचना के संदर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है । समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है
'सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति, परसमया सूइज्जंति, ससमय-परसमया सूइज्जंति ।"
जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है।
सूत्रकृत के नाम के संबंध में एक अनुमान और किया जा सकता है । वह वास्तविकता के बहुत निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं१. परिकर्म
४. पूर्वगत २. सूत्र
५. चूलिका। ३. पूर्वानुयोग
आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है।' प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई, इसलिए इसका 'सूत्रकृत' नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। 'सुत्तगड' और बौद्धों के 'सुत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है। १ (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ८८ ।
(ख) नंबी सू०८०। (ग) अणुओगद्दाराई, सू०५०।। २. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा २: सूतगडं सुत्तकर्ड, सूयगडं चेव गोण्णाई। ३. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०१०।
(ख) नंदी, सू० ५२ ४. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३४ ।
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