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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पव
मूर्तिमान शुक्लध्यान से बनी है। भगवान् की स्वभावसे ही सुन्दर देह तुम सब का कल्याण करे! करामलकवद्विश्वं, कलयन् केवलश्रिया। अचिन्त्यमाहात्म्यनिधिः,सुविधिबाँधयेऽस्तुवः॥१२॥
जो अपने केवल ज्ञान से, समस्त संसार को, हाथ में रक्खे हुए आँवलेकी तरह, साफ देखनेवाले हैं, जो* अचिन्तनीय माहात्म्य या प्रभाव के ख़ज़ाने हैं, वे सुविधिनाथ भगवान् तुम्हारे-सम्यक्त्व पाने में सहायक हों! ___ खुलासा-जिन सुविधिनाथ भगवान् को सारा भूमण्डल, उन के केवलज्ञान के बल से, हाथ में रखे हुए आँवले + की तरह, हरतरफ से साफ दिखाई देता है, और जो अचिन्तनीय प्रभाव के भण्डार हैं, वेही सुविधिनाथ भगवान्
आप लोगों के सम्यकृत्व-पूर्णता-सत्य के प्राप्त करने में सहायक हों; अर्थात उनकी कृपा या सहायता से आप लोगों को सत्य की प्राप्ति होजाय ।
___® अचिन्तनीय माहात्म्य = ख़याल में भी न आने योग्य महिमा या शक्ति । ___ + जिस तरह मनुष्य को हाथ में रखे हुए भाँवले को हर पहल से देख सकना आसान है। उसी तरह भगवान् को सारे संसार को देख लेना भासान है। मनुष्य अपने चर्मचचूओं से हाथ के आँवले को स्पष्ट देख सकता है, भगवान् सुविधिनाथ अपने केवल ज्ञान से संसार को स्पष्ट देख सकते हैं। - अचिन्तनीय=जिसका खयाल भी न किया जासके, जिसको कल्पना भी न हो सके।
$ सम्यकस्व-सत्य, पूर्णता, पूर्ण ज्ञान ।