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प्रथम पर्व
आदिनाथ चरित्र
श्रीसुपार्श्वजिनन्द्राय महेन्द्रमहितांघ्रये । नमश्चतुर्वर्णसंघ गगनाभोगभावते ॥६॥
जिस तरह सूर्य से आकाश शोभायमान होता है; उसी तरह जिन भगवान् सुपार्श्व नाथ से साधु-साध्वी एवं श्रावक और श्राविका रूपी चार प्रकार का संघ शोभायमान होता है, जिनके चरणों की बड़े-बड़े इन्द्रों या महेन्द्रों ने पूजा की हैं, उन्हीं भगवान् श्री सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र को हमारा नमस्कार है ।
खुलासा - जिस तरह सूर्य आकाश में शोभित होता है; उसी तरह भगवान् सुपार्श्वनाथ साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाओं के संघ रूपी आकाश में शोभित होते हैं। जिस तरह सूर्य्य आकाश में रौशनी फैला देता और वहाँ अन्धकार हर लेता है; उसी तरह भगवान् पार्श्वनाथ साधु-स्वाधी और श्रावक-श्राविकाओं के अन्धकार - पूर्ण हृदयों में रोशनी करते और उनके ज्ञान अन्धकार को हरा कर लेते हैं, बड़े बड़े इन्द्र उन की चरण वंदना करते हैं । ऐसे भगवान् श्री सुपार्श्वनाथ जी को हमारा नमस्कार है ।
चन्द्रप्रभप्रभोश्चन्द्रमरीचिनिच योज्ज्वला । मूर्तिर्मूर्त्तसितध्यान निर्मितेव श्रियेऽस्तु वः ॥ १० ॥
भगवान् चन्द्रप्रभ स्वामीकी देह चन्द्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल या निर्मल है। इसलिये, ऐसा मालूम होता है, मानों वह * साधु = संसार त्यागी पुरुष । साध्वी = ससारत्यागनेवाली स्त्री । श्रावक = उपदेश सुननेवाला । श्राविका = उपदेश सुननेवाली ।