Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 11
________________ प्रतिघा फरपाई। इससे यह सिद्ध हुआ कि वीर संवत् (७०) में भाचार्यश्री "रामसूरि"से पोसपाल पंशकी स्थापना हुई उस दिनसे इन लोगोंका फैलाय देशोदेशन होनेलगा।। कहीं येह लोग व्यापारी होते हैं, कही कर्मचारी होते हैं और कहीं खेतीपारीका धंधाभी करते हैं । जिस प्रन्धकी यह प्रस्तावना लिखी जाती है उसके सहायक अर्थात् आर्थिक सहायताके देनेवाले महाशयमी पूर्वक पंाफे एक धर्मप्रिय कुटुंयी हैं । आपका निवास स्थान है बीकानेर (राजपूताना)। भापका शुभनाम है श्रीयुत “कालरामजी कोचर"। [॥ आपके किये शुभकार्योंकी नामावली ॥] विक्रम संवत् (१९७४) में आपकी तर्फसे "जयसलमेर"का संघ निकला था, जिसमें मुनिधी अमीविजयजी आदि (२४) साधुसाध्वीका समुदाय था। "जयसलमेर के निकटवर्ति एक किला है, जिसमें अनेक जिनमन्दिर और हजारोंकी तादादमें प्राचीन जिनप्रतिमाएँ हैं। यद्यपि जयसलमेर प्राचीनकालके शत्रुजय, गिरनार, आवं, अष्टापदें, सम्मेतशिखर, पावापुरी, चंपापुरी, केसरियानाथजी, कांगडी, कुल्पार्क, अन्तरिक्षजी, जैसे तीर्थों जैसा प्राचीन तीर्थ नहीं है, तथापि कितनेक समयसे बीकानेर नागौर फलौधी ऐसेही मारवाड़के औरभी अनेक गाम नगरोंके संघ आकर यहांकी यात्राका लाभ लेते हैं। एक समयका जिकर है कि गुजरात देशके प्रसिद्ध राज्यगादीके पाटनगर पाटणपर मुसलमानोंका आक्रमण हुआ उस समय कुमारपालका अन्तकाल हो चुकाथा, शासनप्रेमी अनेक श्रावकोंने अनेक जिनप्रतिमाएँ और संख्यावद्ध आगम ग्रन्थ लाकर जयसलमेर शहरके मन्दिरोंमें और भंडारोंमें रखे । ऐसे ही कुमारपालके स्वर्गारूढ हुए वाद जव 'अजयपाल'ने उपद्रव मचायाथा तव कुमारपालके मुख्य मंत्री उदयनके लडके आम्रभट्टने कुमारपालके किये कराये धर्मकार्योंका ध्वंस देखकर ( १०० ) ऊंटोंपर शास्त्र-सिद्धान्त लादकर जयसलमेर पहुंचाये थे । पिछले कुछ सैंकडे वर्षों में यहां अनेक बान्तरिक्षजी, जैसे ताथा पाएँरी, केसरियामा गिरनारे, आधु, भी

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