Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 9
________________ ३ ॥ चमत्कारको नमस्कार ॥ देवीकी उस भावनाने इतना प्रौढ वल पकड़ा कि उस (देवी) की प्रार्थना उन ( आचार्य ) को माननी ही पड़ी । सूरिजीने गाम मेंसे रुईकी एक पूनी मंगाई और उसका सांप बनाकर उसको हुकम दिया कि -" जैसे दयाधर्मकी वृद्धि हो वैसे तुम करो" अब वह सांप वहांसे आकाशके रस्ते उढ़ा और सभामें बैठे राजकुमारको काटकर आकाशमै उड़ गया. सभामें हाहाकार मचगया । राजाने विषय, मंत्र, औषधि, जोगी, ब्राह्मण, विपापहारी मणि प्रमुख अनेक उपाय कराये परन्तु उससे लेशमात्र भी फायदा नहीं हुआ । आखीर सब हताश और निराश होगये । सबने रुदन करके राजाकी आज्ञा लेकर कुमारकी अन्त्यक्रिया की । लोग राजपुत्रके शरीरका अग्निसंस्कार करनेको चलेजाते थे कि इतनेमें गुरुमहाराजकी आज्ञासे चेलेने आकर उन सबको रोका और कहा - " हमारे गुरुमहाराजका फरमान है लडका हमको पिना दिखाये जलाया न जावे" इस बातको सुनकर राजा उपलदेव के मनमें कुछ आशा के अंकुर फिरसे प्रकट हुए। वह सब लोग वहांसे चलकर सूरिजीके पास पहुंचे और उनके चरणों में पढकर रोते हुए लाचारीसे बोले - "प्रभु ! हम निराधारोंको आधार मात्र यह एक लड़का है, साप दयाल दयागागर सर्व जगजीव वत्सल हैं, हम सेवकोंको पुत्रकी भिक्षा देकर गुखी करें एम आपके इस उपकारको कभी न भूलेंगे, हमारी तमाम प्रजा यावयन्द्रदिवाकर आपके उपकारको न भूलेगी, आपके बिना हमारा कोई नहीं । याचार्य महाराजने कहा, तुम घबरावो मत । लहरा जीता है !, प कहना ही क्या था ? लटके का जीना सुनतेही राजा प्रजा सब गुम हो गये । राजाने गुरुचरणोंमें तीस नमावर पहा, प्रभु! मेरा अंता रहेगा तो मैं गावची तक आपका ऋणी होकर आपकी आनेगा, आप मुझे जैसे फरमायेंगे में देवेही करूंगा | वाचार्य महाराजने जपने बोगपलते उस सारी और सादेग दिया कि - "तुम अपने विषको सो" इतना सा पाने के शरीरमेंसे जहर धूलिया । पुमार निराबाध उकेरन होकर पिता पूढने लोग है।

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