Book Title: Aapt Mimansa Author(s): Jaychand Chhavda Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti View full book textPage 8
________________ व्रजन्ति खद्योतवदेव हास्यतां न तत्र किं ज्ञानलवोद्धताजनाः॥ ( ज्ञानार्णव) वसुनंदि सिद्धान्त चक्रवर्तिने समंतभद्र संम्बधि मतको तथा स्वामीजीको बड़े ही निर्वाध निर्दोष भद्र विशेषणोंद्वारा नमस्कार कर आपने अपनी बहुतही स्तुत्य मनोज्ञ उद्गारता दिखलाई है। लक्ष्मीभृत्परमं निरुक्तिनिरतं निर्वाणसौख्यप्रदं कुज्ञानातपवारणाय विधृतं छत्रं यथा भासुरम् । सानैर्नययुक्तिमौक्तिकरसैः संशोभमानं परं वन्दे तद्धतकालदोषममलं सामन्तभद्रं मतम् ॥ समन्तभद्रदेवाय परमार्थविकल्पिने। समन्तभद्रदेवाय नमोस्तु परमात्मने॥ (आप्तमीमांसा वृत्तिः) मल्लिषेण प्रशस्तिमें-आपकी किस जगह कैसी अवस्था रही तथा आपके निर्भीकपांडित्यमें उत्कटवादीपना, और भस्मकसरीखे भयंकर रोगके नाश करने में दक्ष, पद्मावती सरीखेदेवताद्वारा सन्मानित, भक्तिविशिष्ट मंत्ररूपवचनोद्वारा चन्द्रप्रभ प्रतिबिंबको प्रगट कर असंभवतामें भी संभवताका प्रगट परिचय दिया, जैनमार्गकी सर्वत्र कल्याणकारी प्रभावना प्रगट की, पटना मालव सिंध ढाका आदि देश नगर विजेता, तधा जिनकी शक्तिप्रभावसे शक्ति प्रभव जिव्हाप्रभा भी कुंठित हो जाती थी, इत्यादि विशेषतासे विशेष वर्णन है । जैसेकि काञ्चयां नग्नाटकोऽहं मलमलिनतनुलाम्बुसे पाण्डुपिण्डः, पुण्डेण्ड्रे शाक्यभिक्षुर्दशपुरनगरे मिष्टभोजी परिवाड्। वारणस्यामभूवं शशधरधवलः पाण्डुरागस्तपस्वी, राजन् यस्थास्ति शाक्तः स वदतु पुरतो जैननिर्ग्रन्थवादी॥१॥ वन्द्यो भस्मकभस्मसात्कृतपटुः पद्यावतीदेवतादत्तोदात्तपदः स्वमंत्रवचनव्याहूतचन्द्रप्रभः । आचार्यः स समन्तभद्रयतिवद् येनेह काले कलौ जैनं वर्त्म समन्तभद्रमभवद्भद्रं समन्तान्मुहुः ॥२॥ पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे भेरी मया तडिता पश्चान्मालवढकसिन्धुविषये काञ्चीपुरे वैदिशे।Page Navigation
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